वास्तु के अनुसार पितृरों की पूजा करने के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए, जानिए

भादों मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष शुरू हो चुका है. पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण दिया जाता है. मान्यता है कि विधि- विधान से तपर्ण करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है.

Update: 2021-09-21 02:28 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भादों मास में पूर्णिमा दिन से पितृ पक्ष शुरु होता है. इस बार श्राद्ध पक्ष 20 सितंबर से शरू हो गया है जो 06 अक्टूबर 2021 तक चलेगा. इन 15 दिनों तक किसी की तरह का शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा करनी चाहिए.

मान्यता है कि यमराज भी जीवों को मुक्त कर देते हैं ताकि अपने परिजनों से तर्पण ग्रह कर परिवार के सदस्यों को आशीर्वाद दें सके. पितृपक्ष में पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वास्तु के नियमों का पालन करना चाहिए. पितृपक्ष में पितरों की पूजा करने के बाद दान – दक्षिणा देना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए. आइए जानते हैं वास्तु के अनुसार पितृरों की पूजा करने के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए.
शास्त्रों के अनुसार पितृलोक की स्थिति को चंद्रमा के ऊपर की दक्षिण दिशा को माना गया है. वास्तु के अनुसार पितरों की दिशा दक्षिण मानी गई है. माना जाता है कि पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है. हमेशा दक्षिण दिशा से पितरों का आगमन होता है. इसलिए इस दिशा में पितरों की पूजा और तर्पण किया जाता है. वास्तु के अनुसार, जिस दिन पर आपके घर पर श्राद्ध हो उस दिन सूर्योदय से लेकर 12 बजकर 24 मिनट की अवधि तक की पितरों का श्राद्ध और तर्पण करें.
वास्तु के अनुसार पितृ पूजन पर साफ- सफाई होनी चाहिए. इसके अलावा पूजा की दीवारों में लाल, पीला, बैंगनी, जैसे आध्यत्मिक रंग हो तो है अच्छा है. माना जाता है कि ये रंग आध्यात्मिक स्तर पर उर्जा बढ़ाने का काम करते हैं. वहीं, काला, नीला और भूरे रंग की दीवारें नहीं होनी चाहिए. श्राद्ध में दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, तिल अनिवार्य होता है. इन सभी चीजों का मिलाकर पिंडदान करने से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.
पितरो की दिशा को दक्षिण माना गया है, इसलिए तपर्ण करते समय कर्ता का मुख दक्षिण में रहना चाहिए. तपर्ण के समय में अग्नि की पूजा दक्षिण- पूर्व दिशा में होनी चाहिए. मान्यता है कि ये दिशा अग्रितत्व का प्रतिनिधित्व करता है. वास्तु के अनुसार उस दिशा में अग्रि संबंधित कार्य करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होता है. इस दिशा में पूजा करने से रोग और क्लेश दूर होते हैं और घर में सुख- समृद्धि का वास होता है. इसके अलावा श्राद्ध का भोज कराते समय ब्राह्मणों का मुख दक्षिण में होनी चाहिए. ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं.


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