जानिए क्या है शनि देव और पीपल के वृक्ष की पौराणिक कथा

शनिदेव न्याय के देवता माने गए हैं। ये अच्छे कर्म करने वालों पर अपनी कृपा दृष्टि करते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंडित करते हैं।

Update: 2021-03-02 17:23 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | शनिदेव न्याय के देवता माने गए हैं। ये अच्छे कर्म करने वालों पर अपनी कृपा दृष्टि करते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंडित करते हैं। शनि देव सूर्य और छाया पुत्र हैं। शनि देव की पूजा सूर्य निकलने से पहले या फिर शाम को सूर्यास्त के बाद की जाती है। जिन जातकों की कुंडली में शनि दोष, ढैय्या या साढ़ेसाती का प्रभाव होता है, उन्हें पीपल के नीचे पूजा करने को कहा जाता है। मान्यता है कि इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जातक पर उनके अशुभ प्रभावों में कमी आती है। वैसे तो पीपल के देव वृक्ष मानकर पूजा ही जाता है। पीपल में भगवान विष्णु की वास माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर शनिदेव की कृपा पाने के लिए पीपल के वृक्ष का पूजन क्यों किया जाता है। इसके पीछे पौराणिक और बेहद ही रोचक कथाएं मिलती हैं। तो चलिए जानते हैं कि शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए पीपल की पूजा क्यों करते हैं।

कथा के अनुसार एक समय असुरों में स्वर्ग पर अपना आधिपत्य कर लिया। उस समय कैटभ नाम का राक्षस था जो पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण यज्ञ के लिए समिधा के लिए पीपल वृक्ष के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषियों को समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर ब्राह्मण कुमार कहां गायब होते जा रहे हैं। ब्राह्मण कुमारों के वापस न लौटने पर ऋषि मुनियों को उनकी अत्यंत चिंता होने लगी। इसके बाद ऋषियों ने शनिदेव अपनी समस्या बताई और उनसे सहायता मांगी। इस बात का पता लगाने के लिए शनिदेव ब्राह्मण रूप धारण करके पीपल के पास गए। जैसे ही शनिदेव पीपल के समीप पहुंचे तो कैटभ ने शनि महाराज को भी पकड़ने की कोशिश की। जिसके बाद शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया और उन्होंने ऋषियों से कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होगी।
इस संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा मिलती है जिसके अनुसार ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। जब ये बड़े हुए तो इन्हें ज्ञात हुआ कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इसके बाद क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया। पिप्लाद ऋषि के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तब पिप्लाद ने ब्रह्मा जी से ब्रह्मदंड मांगा। इसके बाद पीपल के वृक्ष में बैठे शनिदेव पर उन्होंने ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैरों में घोर पीड़ा होने लगी।
इसके बाद शनिदेव दर्द से भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्लाद के क्रोध को शांत किया और शनि की रक्षा की। कथा के अनुसार पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।



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