जानिए हिन्दू ग्रंथो में मय या मयासुर का क्या योगदान है हमारे पौराणिक ग्रंथो में
मय या मयासुर का योगदान:- Contribution of Maya or Mayasura
मय या मयासुर, कश्यप और दनु का पुत्र, नमुचि का भाई, एक प्रसिद्ध दानव है । यह ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र का आचार्य था He was an expert in astrology and Vastushastra.। मय ने दैत्यराज वृषपर्वन् के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर अपने अद्भुत शिल्पशास्त्र के ज्ञान का परिचय दिया था।
इसकी दो पत्नियाँ - हेमा और रंभा थीं जिनसे पाँच पुत्र तथा तीन कन्याएँ हुईं। जब शंकर ने त्रिपुरों को भस्म कर असुरों का नाश कर दिया तब मयासुर ने अमृतकुंड बनाकर सभी को जीवित कर दिया था किंतु विष्णु ने उसके इस प्रयास को विफल कर दिया।
ब्रह्मपुराण (124) के अनुसार इंद्र द्वारा नमुचि का वध होने पर इसने इंद्र को पराजित करने के लिये तपस्या द्वारा अनेक माया विद्याएँ प्राप्त कर लीं। भयग्रस्त इंद्र ब्राह्मण वेश बनाकर उसके पास गए और छलपूर्वक मैत्री के लिये उन्होंने अनुरोध किया तथा असली रूप प्रकट कर दिया। इसपर मय ने अभयदान देकर उन्हें माया विद्याओं की शिक्षा दी।
रामायण में In Ramayana
रावण की पत्नियाँ मंदोदरी और दम्यमालिनी मायासुर और हेमा की पुत्रियाँ थी। वानरराज बालि ने जिन दो दानव भाइयों मायावी और दुंदुभि का वध किया था वे भी मयासुर और माया के ही पुत्र थे।
महाभारत में In the Mahabharata
मायासभा
महाभारत (आदिपर्व, 219.39; सभापर्व, 1.6) के अनुसार खांडव वन को जलाते समय यह उस वन में स्थित तक्षक के घर से भागा। कृष्ण ने तत्काल चक्र से इसका वध करना चाहा किंतु शरणागत होने पर अर्जुन ने इसे बचा लिया। बदले में इसने युधिष्ठिर के लिये सभाभवन का निर्माण किया जो मायासभा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी सभा के वैभव को देखकर दुर्योधन पाण्डवों से डाह करने लगा था। इस भावना ने महाभारत युद्ध को जन्म दिया।
शिवपुराण में In the Shiv Puran
शिवपुराण के अनुसार असुरों का जब शिवजी ने नाश कर दिया, तीनो त्रिपुरों को भष्म कर दिया तो मय राक्षस ने शिवजी की भक्ति की। उसका वृतांत इस प्रकार आया है-
मय दानव, जो शिवजीकी कृपाके बलसे जलनेसे बच गया था, शम्भुको प्रसन्न देखकर हर्षित मनसे वहाँ आया। उसने विनीतभावसे हाथ जोड़कर प्रेमपूर्वक हर तथा अन्यान्य देवोंको भी प्रणाम किया। फिर वह शिवजीके चरणोंमें लोट गया। तत्पश्चात् दानवश्रेष्ठ मयने उठकर शिवजीकी ओर देखा। उस समय प्रेमके कारण उसका गला भर आया और वह भक्तिपूर्ण चित्तसे उनकी स्तुति करने लगा ।