जानिए यह गुप्त राज़ की क्यों शकुनि ने पुरे कुरुवंश के सर्वनाश का कारण बनाने का प्रण लिया था

Update: 2024-06-26 06:40 GMT

शकुनि ने पुरे कुरुवंश के सर्वनाश का कारण बनाने का प्रण लिया:- Shakuni vowed to cause the destruction of the entire Kuru dynasty

शकुनि का जन्म Birth of Shakuni
शकुनि का जन्म गंधार के सम्राट सुबल तथा साम्राज्ञी सुदर्मा के यहाँ हुआ था। शकुनि की बहन गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ था। शकुनि की कुरुवंश के प्रति घृणा का कारण यह था, की हस्तिनापुर के सेनापति भीष्म एक बार धृतराष्ट्र के लिए गांधारी का हाथ माँगने गंधार गए। तब गांधारी के पिता सुबल ने ये बात स्वीकार कर ली, लेकिन उस समय उन्हें ये पता नहीं था की धृतराष्ट्र जन्मांध है। इसका शकुनि ने भी विरोध किया, लेकिन गांधारी अब तक धृतराष्ट्र को अपना पति मान चुकी थी। इसलिए शकुनि ने उस दिन ये प्रण लिया की वह समूचे कुरुवंश के सर्वनाश का कारण बनेगा।
शकुनि या शकुनी गंधार साम्राज्य का राजा था। यह स्थान आज के अफ़्ग़ानिस्तान में है। वह हस्तिनापुर महाराज और कौरवों के पिता धृतराष्ट्र का साला था और कौरवों का मामा। दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनि का हाथ माना जाता है और वह कुरुक्षेत्र के युद्ध के लिए दोषियों में प्रमुख माना जाता है। He is considered chief among the culprits.
उसने कई बार पाण्डवों के साथ छल किया और अपने भांजे दुर्योधन को पाण्डवों के प्रति कुटिल चालें चलने के लिए उकसाया 
Incited to play evil tricks against the Pandavas
। उलूक ,वृकासुर व वृप्रचिट्टी शकुनि तथा आरशी के पुत्र थे।
हस्तिनापुर राज्य को दो बराबर टुकडो़ में बाँटकर एक भाग, जो की पुर्णतः बंजर था, पाण्डवों को दे दिया गया, जिसे उन्होनें अपने अथक प्रयासों से इंद्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) नामक सुंदर नगरी में परिवर्तित कर दिया। शीघ्र ही वहाँ की भव्यता कि चर्चाएँ दूर्-दूर तक होने लगीं। युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ के अवसर पर, दुर्योधन को भी उस भव्य नगरी में जाने का अवसर मिला। वह राजमहल की 
भव्यता देख रहा था, 
looking at the grandeur,
कि एक स्थान पर उसने पानी की तल वाली सजावट को ठोस भूमि समझ लिया और पानी मे गिर गया। यह देखकर द्रौपदी हंसने लगी और उसने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहा। इसे दुर्योधन ने अपना अपमान समझा और वह हस्तिनापुर लौट आया।
अपने भांजे की यह मानसिक स्थिति भाँपकर, शकुनि ने मन में पाण्डवों का राजपाट छिनने का कुटिल विचार आया। उसने पाण्डवों को चौसर के खेल के लिए आमंत्रित किया और अपनी कुटिल बुद्धि के प्रयोग से युधिष्ठिर को पहले तो छोटे-छोटे दाव लगाने के लिए कहा।
जब युधिष्ठिर खेल छोड़ने का मन बनाता तो शकुनि द्वारा कुछ ना कुछ कहकर युधिष्ठिर से कोई ना कोई दाव लगवा लेता। इस प्रकार महाराज युधिष्ठिर एक-एक कर अपनी सभी वस्तुओं को दाव पर लगा कर हारते रहे और अंत में उन्होनें अपने भाईयों और अपनी पत्नी को भी दाव पर लगा दिया और उन्हें भी हार गए और इस प्रकार द्रौपदी का अपमान करके दुर्योधन ने अपना प्रतिशोध ले लिया और उसी दिन महाभारत के युद्ध की नींव पडी़।
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