जानिए हरछठ व्रत की पूजा विधि और महत्व

हिंदू धर्म में हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की पष्ठी को हरहठ का त्योहार मनाते हैं।

Update: 2022-07-27 06:29 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।   हिंदू धर्म में हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की पष्ठी को हरहठ का त्योहार मनाते हैं। इसे हलषष्ठी, हलछठ, ललई छठ या ललही छठ के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हलछठ का व्रत संतान की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। इस व्रत को पुत्रवती महिलाएं रखती हैं। कहा जाता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से पुत्र को संकटों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिट्टी के बर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरती हैं।

हलछठ 2022 कब है?
हलछठ का त्योहार भाद्रौ मास के कृष्ण पक्ष की पष्ठी तिथि को मनाया जाता है। षष्ठी तिथि 17 अगस्त, बुधवार को शाम 06 बजकर 50 मिनट से प्रारंभ होगी। पष्ठी तिथि का समापन 18 अगस्त को रात 08 बजकर 55 मिनट पर होगा। इस साल उदया तिथि के हिसाब से हरछठ व्रत 18 अगस्त को रखा जाएगा।
हलछठ व्रत महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इस महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु और समृद्धि की कामना के लिए उपवास रखती हैं।
हलछठ पूजा विधि-
इस दिन माताएं महुआ पेड़ की डाली का दातून कर स्नान कर व्रत धारण करती हैं। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती हैं। भैंस के दूध की चाय पीती हैं। तालाब बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों तथा कांस के फूल को लगाकर सजाते हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हलषष्ठी देवी की मूर्ति की पूजा करते हैं। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री भी चढ़ाते हैं तथा हलषष्ठी माता की छह कहानी सुनते हैं। इस पूजन की सामग्री में पचहर चांउर (बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौनों जैसे-भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है।
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