शिव के तीसरे ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की खासियत जानें, एवं इससे जुडी पांच बड़ी बातें
धर्म अध्यात्म: सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना से मनुष्य हर दुख से पार पा जाता है. सनातन धर्म में शिव को मोक्ष का देवता कहा जाता है. सावन में भगवान शिव की पूजा के लिए मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है लेकिन शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन का अलग ही महत्व है. इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंग में मध्य प्रदेश के उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भी शामिल है. बाबा महाकाल शिव के तीसरे ज्योतिर्लिंग है. वैसे तो हर ज्योतिर्लिंग का अपना अलग महत्व और विशेषता है लेकिन बाबा महाकाल की महिमा ही अलग है. क्या है शिव के तीसरे ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की खासियत जानें यहां. सभी बलाओं से बचाता है महामृत्युंजय मंत्र,जानें सावन में इसे जपने का लाभ क्यों खास हैं बाबा महाकाल उज्जैन में बसा महाकालेश्वर इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है.बाबा महाकाल के शिवलिंग की खासियत यह है कि यह तीन हिस्सों में बंटी हुई है.शिवलिंग के नीचे के हिस्से में महाकालेश्वर, दूसरे हिस्से में ओमकारेश्वर शिवलिंग और तीसरे हिस्से में नागचंद्रेश्वर शिलिंग विराजमान हैं. खास बात यह है कि नागचंद्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी के दिन ही होते हैं. उज्जैन में एक साथ तीन महाकाल के दर्शन
उज्जैन बाबा महाकाल की नगरी है. उज्जैन शहर में तीन महाकाल मौजूद हैं. पहले काल भैरव, दूसरे अर्ध कालभैरव और तीसरे गढ़कालिका महाकाल. इस तरह से उज्जैन में भगवान शिव की ही महिमा गुंजायमान हैं. भस्म आरती का महत्व बाबा महाकाल के मंदिर में भस्म आरती का खास महत्व है. देश विदेश से लोग बाबा की भस्म आरती में शामिल होने उज्जैन पहुंचते हैं. हर रोज बाबा का श्रृंगार ताजा भस्म से ही किया जाता है. इस भस्म आरती में शामिल होना आसान नहीं है. इसके लिए पहले से ऑनलाइन बुकिंग करवानी होती है. बाबा महाकाल की भव्य सवारी उज्जैन में हर साल बाबा महाकाल की भव्य सवारी निकाली जाती है. इस सवारी की खास बात ये है कि नशे में धुत कोई भी शख्स बाबा की सवारी में शामिल नहीं हो सकता है. भगवान भोलेनाथ की बारात में हर उज्जैनवासी झूमता नजर आता है. इस दिन हर तरफ शिव की ही महिमा दिखाई और सुनाई देती है. उज्जैन में सिर्फ एक ही राजा उज्जैन में भले ही तीन महाकाल विजानमान हों लेकिन उज्जैन के राजा सिर्फ एक यानी कि बाबा महाकाल ही कहलाते हैं. मान्यता यह भी है कि राजा विक्रमादित्य आखिरी राजा थे जो उज्जैन में रात को रुके थे. यहां पर कोई भी राजा महाकाल के दर पर माथा टेके बिना रात नहीं गुजार सकता. अगर कोई भी ऐसा करता है तो वह उसकी आखिरी रात होती है.