जानिए कार्तिक मास में दीपदान के खास उपाय, मां लक्ष्‍मी होती हैं बेहद प्रसन्‍न

कार्तिक मास में दीपदान के खास उपाय

Update: 2020-11-05 14:23 GMT

जानिए कार्तिक मास में दीपदान के खास उपाय, मां लक्ष्‍मी होती हैं बेहद प्रसन्‍न

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कार्तिक मास में दीपदान के खास उपाय

हिंदू धर्म में कार्तिक मास को चतुर्मास का अंतिम मास माना जाता है और इस महीने का शास्‍त्रों में खासा महत्‍व बताया गया है। इस माह में भजन, पूजन और दान-पुण्‍य के साथ दीपदान का खास महत्‍व माना गया है। माना जाता है कि इस महीने में भगवान लक्ष्‍मीनारायण की विशेष कृपा भक्‍तों को प्राप्‍त होती है। माना जाता है कि मां लक्ष्‍मी के बिना इस संसार की कल्पना भी नहीं कर जा सकती, इसलिए कार्तिक मास में मां लक्ष्‍मी को प्रसन्‍न करने के लिए दीपदान के खास उपाय बताए गए हैं। आइए जानते हैं इस बारे में विस्‍तार से…

क्‍यों किया जाता है दीपदान

कार्तिक मास में दीपदान करना बहुत ही शुभफलदायी माना जाता है। माना जाता है कि कार्तिक माह में आकाशमंडल का सबसे बड़ा ग्रह माना जाने वाला सूर्य अपनी नीच की राशि तुला में गमन करता है। इस वजह से वातावरण में अंधकार पांव पसारने लगता है। इसलिए इस पूरे मास में दीपक जलाने, जप, तप और दान व स्‍नान करने का विशेष महत्‍व माना गया है। अगर किसी विशेष कारण से कार्तिक में प्रत्येक दिन आप दीपदान करने में असमर्थ हैं तो पांच विशेष दिन जरूर करें। आइए जानते हैं कौन से हैं ये 5 दिन।

पद्म पुराण में बताई गई यह बात

पद्मपुराण के उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पांच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं।

कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च

पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्

विशेषतः कृष्णपक्ष में 5 दिन (रमा एकादशी से दीपावली तक) बड़े पवित्र हैं। उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

अग्निपुराण के अनुसार

अग्निपुराण में बताया गया है कि जो मनुष्य देव मंदिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है। पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।

लक्ष्‍मी प्राप्ति के लिए

पद्मपुराण के अनुसार, जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं। एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष जलाएं।

समस्त तीर्थों का फल

माना जाता है कि जिसने कार्तिक में भगवान केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगाने के समान फल की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है जो कार्तिक में श्रीहरि को घी का दीप देता है, वह दीपक जितने पल जलता है, उतने वर्षों तक हरिधाम में आनन्द भोगता है। फिर अपनी योनि में आकर विष्णुभक्ति पाता है।

शिवजी के सम्‍मुख जलाएं दीप

जो कार्तिक मास की रात्रि में श्रद्धापूर्वक शिवजी के समीप दीपमाला समर्पित करता है, उसके चढ़ाये गए वे दीप शिवलिंग के सामने जितने समय तक जलते हैं, उतने हजार युगों तक दाता स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो कार्तिक महीने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।

कैसे करें दीपदान ?

मिट्टी, तांबा, चांदी, पीतल अथवा सोने के दीपक लें। उनको अच्छे से साफ़ कर लें। मिट्टी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें। उसके पश्‍चात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूं लेकर मंदिर जाएं। घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं। दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें क्योंकि कालिका पुराण का कथन है, सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नहीं होता। उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें। उसके बाद दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें। दीपक को प्रणाम करें।

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