जानिए बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व, जिसमें इस दिन होती है भगवान शिव और विष्णु की पूजा

पुराणों में कहा गया है कि इसी दिन भगवान शिव ने विष्णु भगवान को सुदर्शन चक्र दिया था

Update: 2020-11-26 11:49 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिन्दू पंचांग के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा करते है और व्रत रखते हैं. उन्हें बैकुंठधाम की प्राप्ति होती है.


बैकुंठ चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त:

  • बैकुंठ चतुर्दशी इस बार 28 नवंबर यानी कि शनिवार को है.
  • बैकुंठ चतुर्दशी तिथि का आरंभ: 28 नवंबर को प्रातः 10 बजकर 22 मिनट
  • बैकुंठ चतुर्दशी तिथि का समापन: 29 नवंबर को दोपहर47 बजे
  • बैकुंठ चतुर्दशी निशिथ काल: रात 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 37 मिनट तक
  • बैकुंठ चतुर्दशी निशिथ काल की अवधि: 55 मिनट 


बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि: बैकुंठ चतुर्दशी को प्रातःकाल नित्यकर्म स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का पूजन करके व्रत का संकल्प लें. शाम को 108 कमल पुष्पों के साथ विष्णु भगवान का पूजन करें. उसके बाद शिव भगवान का विधि-विधान से पूजन करें. दूसरे दिन प्रातः काल भगवान शिव का पूजन कर जरूरतमंद लोगों को भोजन कराकर व्रत का पारण करें.


बैकुंठ चतुर्दशी का महत्त्व:

बैकुंठ चतुर्दशी का शास्‍त्रों में विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान शिव और विष्णु भगवान की पूजा करने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. पुराणों में कहा गया है कि इसी दिन भगवान शिव ने विष्णु भगवान को सुदर्शन चक्र दिया था. इस दिन जिस व्यक्ति का देहावसान होता है उसे सीधे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है.


पैराणिक कथाओं के अनुसार एकबार लोगों के मुक्ति का मार्ग पूछने के लिए नारद जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे. नारदजी के पूंछने पर विष्णु भगवान कहते हैं कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो प्राणी श्रद्धा और भक्ति से मेरी और भगवान शिव की पूजा करते हैं. उनके लिए बैकुंठ के द्वार खुल जाते हैं.

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