जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी की रात भगवान विष्णु ने अपने आठवें अवतार में बालकृष्ण के रूप में मां देवकी की गर्भ से जन्म लिया था. भगवान कृष्ण का अवतार मथुरा में देवकी के भाई कंस की जेल में हुआ था. मान्यता है कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के समय मध्य रात्रि थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और रोहिणी नक्षत्र लगा था. इसलिए रोहिणी नक्षत्र में ही श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष जन्माष्टमी 19 अगस्त 2022 की मध्य रात्रि में मनाया जायेगा.
जन्माष्टमी का महात्म्य
सनातन धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व है. इस दिन श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कृष्ण जन्मोत्सव मनाने वाले निसंतान जातकों को श्रीकृष्ण की कृपा से संतान प्राप्ति होती है. इस दिन देश-विदेश के सभी कृष्ण मंदिरों को फूलों और विद्युत लड़ियों से सजाया जाता है. घरों और मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है. बालकृष्ण का श्रृंगार कर कृष्णभक्त रात बारह बजे तक व्रत रखते हैं. बारह बजे शंख, घंटी और घड़ियाल की आवाज से जय श्री कृष्ण का जयकारा करते हैं. महिलाएं सोहर गाती हैं, कीर्तन-भजन होते हैं, देर रात कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण करते हैं.
जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त्त
निशीथ पूजा मुहूर्त: 12.03 AM से 12.46 AM तक (20, अगस्त 2022)
अवधि: 43 मिनट
चूंकि भगवान कृष्ण मध्य रात्रि पैदा हुए थे, इसलिए अष्टमी व्रत 19 अगस्त 2022, के दिन रखा जायेगा.
जन्माष्टमी पारण मुहूर्त: 05.52 AM के बाद (20, अगस्त 2022)
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजन विधि
अष्टमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण के साथ सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें, तथा व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. घर के मंदिर की सफाई करें. आसन बिछाकर उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुंह करके बैठें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. दाएं हाथ में जल, मौसमी फल एवं पीला पुष्प लेकर संकल्प करें. मध्यान्ह के समय स्नान के जल में काला तिल के कुछ दाने डालकर स्नान करें. अब मां देवकी के लिए प्रसूति गृह बनाकर एक स्वच्छ एवं सुन्दर आसन बिछाएं. इस पर कलश स्थापित करें. भगवान श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती देवकी की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मीजी का ध्यान कर पुष्प अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें.
ऊं देवकीनंदनाय विद्महे वासुदेवाय, धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोद्यात
रात्रि के 12 बजते ही पहले से तैयार अलंकृत झूले पर बालकृष्ण की प्रतिमा को रोली अक्षत का तिलक लगाएं. पुष्प हार पहनाएं. भोग के लिए पंजीरी, पंचामृत मौसमी फल, मिष्ठान आदि अर्पित करें. इस दिन बहुत से लोग छप्पन भोग चढ़ाते हैं. झूला झुलाते हुए कृष्ण स्तुति गायें.
भये प्रगट गोपाला दीनदयाला यशुमति के हितकारी।
हरषित महतारी सुर मुनि हारी मोहन मदन मुरारी ॥
कंसासर जाना मन अनुमाना पूतना वेगी पठाई।
तेहि हर्षित धाई मन मुस्काई गयी जहाँ यदुराई॥
तब जाय उठायो हृदय लगायो पयोधर मुख मे दीन्हा।
तब कृष्ण कन्हाई मन मुस्काई प्राण तासु हर लीन्हा॥
भगवान श्री कृष्ण की आरती उतारें और जयकारा लगाते हुए प्रसाद का वितरण करें.