जानिए मकर संक्रांति की पौराणिक कथाएं

मकर संक्रांति का पर्व देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन खिचड़ी, पोंगल और बिहू भी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और तिलांजलि करने से व्यक्ति के समस्त पाप कट जाते हैं। व

Update: 2022-01-14 02:27 GMT

मकर संक्रांति का पर्व देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन खिचड़ी, पोंगल और बिहू भी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और तिलांजलि करने से व्यक्ति के समस्त पाप कट जाते हैं। वहीं, पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। कालांतर में राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने हेतु कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती धरती पर गंगा रूप में अवतरित हुई थी। इस वजह से राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। साथ ही कई अन्य पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं-

पौराणिक कथाएं

सनातन धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि दैविक काल में भगवान श्रीहरि का धरती पर अवतरण हुआ था। उस समय वे कपिल मुनि के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। कालांतर में भगवान गंगासागर के समीप आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे। उन दिनों राजा सगर की प्रसिद्धि तीनों लोकों में थी। सभी राजा सगर के परोपकार और पुण्य कर्मों की महिमा करते थे। यह देख राजा इंद्र बेहद क्रोधित और चिंतित हो उठे। स्वर्ग के राजा इंद्र को लगा कि अगर राजा सगर को नहीं रोका गया, तो वे आगे चलकर स्वर्ग के राजा बन जाएंगे।

यह सोच राजा इंद्र ने राजा सगर द्वारा आयोजित यज्ञ हेतु अश्व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के समीप बांध दिया। जब राजा सगर को अश्व के चोरी होने की सुचना मिली, तो उन्होंने अपने सभी पुत्रों को अश्व ढूंढने का आदेश दिया। जब कपिल मनु के आश्रम के बाहर अश्व बंधा दिखा, तो राजा सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि पर अश्व चुराने का आरोप लगाया। यह सुन कपिल मुनि क्रोधित हो उठे और उन्होंने तत्काल राजा सगर के सभी पुत्रों को भस्म कर पाताल भेज दिया।

जब राजा सगर को यह बात पता चला, तो वे कपिल मुनि के चरणों में गिर पड़े और उनके पुत्रों को क्षमा करने की याचना की। हालांकि, श्राप वापस नहीं लिया जाता है। अतः कपिल मुनि ने उन्हें पुत्रों को मोक्ष हेतु गंगा को धरती पर लाने की सलाह दी। तब राजा भगीरथ ने माता पार्वती की कठिन तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर माता पार्वती गंगा रूप धारण कर धरती पर मकर संक्रांति के दिन अवतिरत हुई। जब राजा सगर के मृत पुत्रों को गंगा का स्पर्श हुआ, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

पौराणिक कथा

चिरकाल में मधु और कैटभ नामक दो दैत्य थे। जो आसुरी प्रवृति के थे। इनके अत्यचार और दुःसाहस से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। इसके बाद भगवान विष्णु जी ने दोनों को वध कर दोनों के धड़ को दो विपरीत दिशा में फेंक दिया। हालांकि, धड़ एकजुट होकर फिर से मधु और कैटभ बन गए और तीनों लोकों में अपना आतंक मचाना शुरू कर दिया।

इसके बाद भगवान विष्णु जी ने आदिशक्ति का आह्वान किया और मां दुर्गा ने दोनों का विध किया। कालांतर में भगवान श्रीहरि विष्णु जी ने मधु और कैटभ को पृथ्वी लोक पर लाकर मंदार पर्वत के नीचे उन्हें दबा दिया, ताकि वह फिर से उत्पन्न न हो सके। तब मधु और कैटभ ने मकर संक्रांति के दिन उनसे दर्शन देने का वरदान मांगा। दानवों के इस वरदान को विष्णु जी ने स्वीकार कर लिया। कालांतर से भगवान नारायण मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत दानवों को दर्शन देने आते हैं। इसके अलावा, सूर्यदेव एक माह के लिए मकर संक्रांति के दिन अपने पुत्र शनिदेव के घर आते हैं।


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