जानिए भविष्यपर्व का क्या आशय है और मानव जीवन में इसका क्या महत्व है

Update: 2024-06-26 06:47 GMT

भविष्यपर्व का आशय :- Meaning of Bhavishya Parva: -

हरिवंशपुराण में तीन पर्व (हरिवंशपर्व, विष्णुपर्व तथा भविष्यपर्व) तथा ३१८ अध्याय हैं। There are 318 chapters.
हरिवंश के अंतर्गत हरिवंशपर्व शैली और वृत्तांतों की दृष्टि से विष्णुपर्व और भविष्यपर्व से प्राचीन ज्ञात होता है। अश्वघोषकृत वज्रसूची में हरिवंश से अक्षरश: समानता रखनेवाले कुछ श्लोक मिलते हैं। पाश्चात्य विद्वान् वैबर ने वज्रसूची को हरिवंश का ऋणी माना है और रे चौधरी ने उनके मत का समर्थन किया। अश्वघोष का काल लगभग द्वितीय शताब्दी निश्चित है। यदि अश्वघोष का काल द्वितीय शताब्दी है तो हरिवंशपर्व का काल प्रक्षिप्त स्थलों को छोड़कर द्वितीय शताब्दी से कुछ पहले समझना चाहिए।
हरिवंश में काव्यतत्व अन्य प्राचीन पुराणों की भाँति अपनी विशेषता रखता है। रसपरिपाक और भावों की समुचित अभिव्यक्ति में यह पुराण कभी कभी उत्कृष्ट काव्यों से समानता रखता है। व्यंजनापूर्ण प्रसंग पौराणिक कवि की प्रतिभा और कल्पनाशक्ति का परिचय देते हैं।
हरिवंश में उपमा, रूपक, समासोक्ति, अतिशयोक्ति, व्यतिरेक, यमक और अनुप्रास ही प्राय: मिलते हैं। ये सभी अलंकार पौराणिक कवि के द्वारा प्रयासपूर्वक लाए गए नहीं प्रतीत होते।
काव्यतत्व की दृष्टि से हरिवंश में प्रारंभिकता In terms of poetic elements, inception in Harivamśa और मौलिकता है। हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण, भागवतपुराण और पद्मपुराण के ऋतुवर्णनों की तुलना करने पर ज्ञात होता है कि कुछ भाव हरिवंश में अपने मौलिक सुंदर रूप में चित्रित किए गए हैं और वे ही भाव उपर्युक्त पुराणों में क्रमश: अथवा संश्लिष्ट होते गए हैं।
सामग्री और शैली को देखते हुए भी हरिवंश एक प्रारंभिक पुराण है। संभवत: इसी कारण हरिवंश का पाठ अन्य पुराणों के पाठ से शुद्ध मिलता है। कतिपय पाश्चात्य विद्वानों द्वारा हरिवंश को स्वतंत्र वैष्णव पुराण अथवा महापुराण की कोटि में रखना समीचीन है। महाभारत कलियुग के वर्तमान ३१०० ईश्वी पूर्व अर्थात २०२४ में युगाब्द ५१२४ से ३६ वर्ष पूर्व हुआ था इसीलिए उसका प्राचीनतम पर्व हरिवंश पुराण संकलन लगभग ५३०० पूर्व का होगा, जो की हिंदु काल गड़ना के पूर्व कल्पों में भी प्राप्त हिंदु धर्म ग्रंथो का ही पुनर्स्थापना संकलन है।
इस पुराण में भगवान विष्णु का कृष्ण के रूप में जन्म बताया गया है। जिसमें कंस का देवकी के पुत्रों का वध से लेकर कृष्ण In which Kansa kills Devaki's sons till कृष्णा के जन्म लेने तक की कथा है। फिर भगवान कृष्ण की ब्रज-यात्रा के बारे में बताया है जिसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन है। इसमें धेनुकासुर वध, गोवर्धन उत्सव का वर्णन किया गया है। आगे कंस की मृत्यु के साथ उग्रसेन के राज्यदान का वर्णन है। आगे बाणसुर प्रसंग में दोनों के विषय में बताया है। भगवान कृष्ण के द्वारा शंकर की उपासना का वर्णन है। हंस-डिम्भक प्रसंग का वर्णन है। अंत में श्रीकृष्ण और नन्द-यशोदा मिलन का वर्णन है।
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