जानिए नवंबर महीने के प्रमुख व्रत त्योहार और उनका महत्व

नवंबर महीने की शुरुआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि से साथ हो रही है

Update: 2021-10-26 10:13 GMT

नवंबर महीने की शुरुआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि से साथ हो रही है। महीने की पहले दिन ही भगवान विष्णु की प्रिय रमा एकादशी है। अगले दिन से दिवाली के त्योहार शुरू हो जाएंगे, जिसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दिवाली पूजन होंगे। इसके बाद गोवर्धन पूजा और भाई दूज आएंगे। इसके बाद छठ महापर्व की शुरुआत हो जाएगी। फिर आंवला नवमी, देवोत्थान एकादशी से लेकर देव दीपावली जैसे व्रत-त्योहार भी इस महीने आने वाले हैं। इन सभी व्रत त्योहारों का धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है। दिवाली के अलावा इस बार नवंबर का महीना इसलिए भी खास है क्योंकि एक ही महीने में 2 एकादशी, देवउठनी और रमा एकादशी आ रही हैं, इसके साथ ही कार्तिक पूर्णिमा भी है, ऐसे में यह महीना भक्तों के लिए बड़ा ही उत्तम माना जा रहा है। आइए जानें इस महीने आने वाले प्रमुख त्योहारों की तिथि और उनका धार्मिक दृष्टि से क्या महत्व है।

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पूर्णावतरा भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन तुलसी पूजन करना भी शुभ माना जाता है। इस एकादशी को माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है क्योंकि माता लक्ष्मी का एक नाम रमा भी है इसलिए इस एकादशी का नाम रमा एकादशी पड़ा। रमा एकादशी चतुर्मास की अंतिम एकादशी होती है।

कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से पांच दिवसीय दिवाली के पर्व की शुरुआत हो जाती है। धनतेरस का दिन भगवान धन्वंतरि को समर्पित होता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो भी खरीदा जाता है, उससे कई गुना लाभ की प्राप्ति होती है। सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी और कुबेर भगवान की पूजा करनी चाहिए। साथ ही इस दिन भौम प्रदोष व्रत किया जाएगा, जो भगवान शिव को समर्पित होता है।

कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को ही छोटी दिवाली कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस दिन ही छोटी दिवाली, नरक चतुर्दशी और हनुमान जयंती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस चतुर्दशी तिथि को सुबह तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियां जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है।
दीपावली का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। आध्यात्मिक रूप से यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे, जिसकी खुशी में अयोध्या वासियों ने दीपक जलाए थे। इस दिन महालक्ष्मी की पूजन किया जाता है। सनातन धर्म में दीपावली का पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने के बाद उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन की पूजा की जाती है। इस दिन अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, जिसका अपना विशेष महत्व है। इस दिन घरों में गोबर से गोवर्धन भगवान को प्रतीक के रूप में निर्मित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन वामन अवतार की पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी। उस दिन से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हो गई थी।
गोवर्धन पूजा के बाद भाई दूज का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन यमराज और उनकी बहन यमुना की पूजा की जाती है इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस पर्व का भाई-बहन भी बहुत उत्सुकता से इंतजार करते हैं। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों का हमेशा साथ देना का वचन देते हैं।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ महापर्व की शुरुआत हो जाती है। इस दिन छठ माता की पूजा-अर्चना की जाती है। चतुर्थी तिथि से लेकर यह पर्व सप्तमी तिथि की सुबह तक चलता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है, इसके बाद खरना, सांझ और भोर को सूर्य देव को अर्घ्य देकर यह पर्व मनाया जाता है। छठ पूजा छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
अक्षय नवमी या आंवला नवमी का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य, आरोग्य, संतान और सुख की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में अक्षय नवमी का वही महत्व बताया गया है, जैसा वैशाख मास की अक्षय तृतीया का है। मान्यता है कि इस दिन से द्वापर युग का आरंभ हुआ था। साथ ही अक्षय नवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक असुर का वध किया था।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है, इसे देवोत्थान और देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। चातुर्मास की नींद के बाद भगवान विष्णु इस दिन निद्रा से जागते हैं। जगत के पालनकर्ता के जागने के बाद ही मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाती है। देव प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह का कार्यक्रम किया जाता है।

सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन धार्मिक कार्य जैसे जप, तप और दान का किया जाता है। इस दिन भगवान नारायण ने मत्स्य अवतार धारण किया था। इस दिन दीपदान करने से हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य फल मिलता है। मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की अंशरूप तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के साथ विवाह हुआ था, इस खुशी में देवता इस दिन दीपावली मनाते हैं। इस दिन सिखों के प्रथम गुरु और सिख संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु नानक देव का जन्म संवत् 1527 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए इस दिन को नानक जयंती के नाम से भी जाना
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