शिव पार्थिव पूजन का जानें ​पूरी विधि और महत्व

श्रावण मास में भगवान शिव के पार्थिव पूजन का अत्यधिक महत्व है

Update: 2021-07-11 11:29 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | श्रावण मास में भगवान शिव के पार्थिव पूजन का अत्यधिक महत्व है। शिव पुराण में पार्थिव शिवलिंग की पूजा से होने वाले लाभ के बारे में विस्तार से बताया गया है। शिव के पार्थिव पूजन से साधक को धन-धान्य, सुख-समृद्धि और जीवन से जुड़े कष्टों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव के पार्थिव पूजन का महात्मय इस तरह से भी जाना जा सकता है कि स्वयं भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पहले इस उपाय को किया था। जीवन से जुड़े तमाम तरह के भय से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाले पार्थिव पूजन के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ये लेख —

पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्‍व
सनातन परंपरा से जुड़ी जितने भी देवताओं की पूजन विधियां है, उसमें पार्थिव पूजन के द्वारा शिव की साधना-अराधना को सबसे ज्यादा फल देने वाला बताया गया है। मान्यता है कि पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने से करोड़ों यज्ञों के समान फल मिलता है।
तब भगवान श्री राम ने किया पार्थिव पूजन
भगवान श्री राम ने लंका के राजा रावण से मुकाबला करने से पहले विजय की कामाना से समुद्र तट पर पार्थिव शिवलिंग का पूजन किया था। कुछ इसी तरह शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से ज्यादा शक्ति पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर महादेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
पार्थिव शिवलिंग बनाने के ​विधि
पार्थिव लिंग एक या दो तोला मिट्टी लेकर हाथ से बनाया जाता है। इसे अंगूठे की नाप का बनाया जाता है। इसके लिए सबसे पहले शिव साधक को पार्थिव शिवलिंग की पूजा का संकल्प लेना चाहिए। पार्थिव शिवलिंग को किसी पवित्र स्थान पर पवित्र मिट्टी के माध्यम से इसे बनाया जाना चाहिए। शिवलिंग को बनाने के लिए पवित्र नदी या झरने से मिट्टी ले आएं और शुद्ध कर लें। इसके पश्चात् इसमें गाय का गोबर, गुड़, मक्खन और भस्म मिलाकर शिवलिंग बनाएं। पार्थिव शिवलिंग बनाते समय आपका मुह हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए। पार्थिव शिवलिंग बनाते समय भगवान शिव के मंत्र का जाप करते रहें। पार्थिव शिवलिंग तैयार हो जाने के बाद सबसे पहले गणपति की पूजा करें उसके बाद भगवान विष्णु, नवग्रह और माता पार्वती आदि का आह्वान करें। इसके बाद पार्थिव शिवलिंग की बेलपत्र, आक के फूल, धतूरा, बेल, कच्चे दूध आदि से पूजा करें।
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)


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