जानिए स्कंद षष्ठी का व्रत विधि, और इनके महत्व
स्कंद षष्ठी व्रत 18 जनवरी है. स्कंद षष्ठी का व्रत भक्त भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को समर्पित माना जाता है.
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | स्कंद षष्ठी व्रत 18 जनवरी है. स्कंद षष्ठी का व्रत भक्त भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को समर्पित माना जाता है.भक्त स्कंद षष्ठी पर भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं और पूजा अर्चना करते हैं. यह व्रत मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में लोकप्रिय है. आपको बता दें कि भगवान कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं. आइए जानते हैं स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा विधि और धार्मिक महत्व.
स्कंद षष्ठी व्रत विधि:
-स्कंद षष्ठी व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई कर लें.
-इसके बाद स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें.
-पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें.
पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र से करें. अंत में आरती करें.
-वहीं शाम को कीर्तन-भजन और पूजा के बाद आरती करें. इसके पश्चात फलाहार करें.
स्कंद षष्ठी व्रत का धार्मिक महत्व:
-धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है. इस पूजा से जीवन में हर तरह की कठिनाइंया दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है. साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है. हालांकि यह त्योहार दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है. उनका प्रिय फूल चंपा है, इसलिए इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था.