जानिए भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाता है।

Update: 2022-08-14 10:43 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।   हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाता है। इसे हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी, बहुला संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने के साथ व्रत रखने से सभी तरह के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जानिए भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी 2022 का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 14 अगस्त, रविवार को रात 10 बजकर 35 मिनट से शुरू
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का समापन- 15 अगस्त, सोमवार को रात 09 बजकर 01 मिनट तक
15 अगस्त को उदया तिथि को होने के कारण इस दिन ही व्रत रखा जाएगा।
चंद्रोदय का समय- 15 अगस्त रात 09 बजकर 27 मिनट पर होगा
अभिजीत योग- सुबह 11 बजकर 59 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक।
धृति योग- 15 अगस्त सुबह से लेकर रात 11 बजकर 24 मिनट तक
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी के पावन दिन चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है। भगवान गणेश की प्रार्थना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और वे एक समृद्ध जीवन व्यतीत करेंगे। निसंतान दंपत्ति भी संतान प्राप्ति के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
गणेश चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठकर सभी दैनिक कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें।
साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने के बाद श्री गणेश का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें।
अब भगवान गणेश जी की पूजा आरंभ करें।
सबसे पहले पुष्प के माध्यम से जल अर्पित करें।
अब भगवान गणेश को फूल, माला, दूर्वा घास अर्पित करें।
फिर सिंदूर, अक्षत लगा दें।
गणपति जी को भोग में मोदक या फिर अपने अनुसार कोई मिठाई खिला दें।
अब दीपक-धूप जलाने के बाद भगवान गणेश चालीसा और मंत्रों का जाप करें।
अंत में विधिवत तरीके से पूजा करने के बाद भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
दिनभर व्रत रखने के बाद शाम के समय चंद्रोदय होने से पहले एक बार फिर से गणपति जी की विधिवत पूजा करें।
चंद्रोदय के समय चंद्र देव को जल अर्पित करने के बाद फूल, फल, दूध से बनी चीजें अर्पित करें।
पूजा पाठ पूरा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोल लें।
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