जानिए कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की तिथि और पूजा मुहूर्त

आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) व्रत रखते हैं. इस साल कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 17 जून दिन शुक्रवार को है

Update: 2022-06-09 08:52 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) व्रत रखते हैं. इस साल कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 17 जून दिन शुक्रवार को है. यह जून की पहली संकष्टी चतुर्थी है. इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी बताते हैं कि संकष्टी चतुर्थी व्रत में चंद्रमा की पूजा करते हैं, जबकि विनायक चतुर्थी में चंद्रमा को देखना वर्जित होता है. संकष्टी चतुर्थी में चंद्रमा की पूजा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है. आइए जानते हैं कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की तिथि, पूजा मुहूर्त और चंद्रोदय समय के बारे में.

कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 2022 मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 17 जून दिन शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 10 मिनट पर होगा. यह तिथि अगले दिन सूर्योदय पूर्व ही तड़के 02 बजकर 59 मिनट पर समाप्त हो जा रही है. इस स्थिति में कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत 17 जून को रखा जाएगा.
सर्वार्थ सिद्धि योग में संकष्टी चतुर्थी
इस दिन इंद्र योग सुबह से लेकर शाम 05 बजकर 18 मिनट तक है. सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 09 बजकर 56 मिनट से अगले दिन 18 जून को प्रात: 05 बजकर 03 मिनट तक है. इस दिन आप सर्वार्थ सिद्धि योग में संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा करें, तो यह आपके लिए ज्यादा फलदायी होगा.
सर्वार्थ सिद्धि योग में आप जो भी कार्य करते हैं, वह सफल होते हैं. यह योग सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है. इस दिन का शुभ समय 11 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक है. संकष्टी चतुर्थी के दिन राहुकाल सुबह 10 बजकर 14 मिनट से 11 बजकर 57 मिनट तक है. इस समय में कोई शुभ कार्य न करें.
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रोदय
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात 10 बजकर 03 मिनट पर होगा. इस दिन चंद्रोदय के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी होगी. चंद्रमा के निकलने पर उसकी पूजा करें और एक पात्र में जल, गाय का दूध, अक्षत् और फूल लेकर अर्घ्य दें. उसके बाद व्रत का पारण करें.
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