जानिए भानु सप्तमी की तिथि और पूजा मुहूर्त

जब किसी भी माह की सप्तमी तिथि रविवार के दिन होती है, तो उस दिन भानु सप्तमी (Bhanu Saptami) होती है. सप्तमी तिथि के स्वामी या अधिप​ति देव स्वयं भगवान सूर्य हैं.

Update: 2022-05-20 07:01 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जब किसी भी माह की सप्तमी तिथि रविवार के दिन होती है, तो उस दिन भानु सप्तमी (Bhanu Saptami) होती है. सप्तमी तिथि के स्वामी या अधिप​ति देव स्वयं भगवान सूर्य हैं. ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी ति​थि 22 मई दिन रविवार को है, इस​लिए भानु सप्तमी व्रत इस दिन रखा जाएगा. वैसे भी ज्येष्ठ माह में सूर्य देव की उपासना और रविवार व्रत रखने का महत्व है. इस माह में सूर्य देव के भानु स्वरूप की पूजा करते हैं. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, भानु सप्तमी का व्रत रखने और सूर्य देव की पूजा करने से दुख, रोग, पाप आदि नष्ट हो जाते हैं. सूर्य देव की कृपा से धन, धान्य, वंश और सुख में वृद्धि होती है. इस दिन सूर्य को जल देने से बुद्धि विवेक बढ़ता है, दान करने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है. भानु सप्तमी के पुण्य प्रभाव से पिता के साथ रिश्ता मजबूत होता है. आइए जानते हैं भानु सप्तमी की तिथि, पूजा मुहूर्त और इस दिन क्या करें.

भानु सप्तमी 2022 ति​थि
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारंभ 21 मई दिन शनिवार को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 22 मई रविवार को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट पर होगा. ऐसे में भानु सप्तमी व्रत 22 मई को रखा जाएगा.
भानु सप्तमी 2022 पूजा मुहूर्त
भानु सप्तमी व्रत के दिन इंद्र योग सुबह से लेकर अगले दिन प्रात: 03:00 बजे तक है और धनिष्ठा नक्षत्र रात 10:47 बजे तक है. द्विपुष्कर योग प्रात: 05:27 बजे से लेकर दोपहर 12:59 बजे तक है. इंद्र योग, द्विपुष्कर योग और धनिष्ठा नक्षत्र शुभ एवं मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम माने गए हैं. इस दिन राहुकाल शाम 05:26 बजे से शाम 07:09 बजे तक है.
भानु सप्तमी व्रत एवं पूजा विधि
यदि आपको 22 मई को भानु सप्तमी का व्रत रखना है तो उस दिन नमक का सेवन नहीं करना है. इस दिन प्रात: स्नान के बाद तांबे के पात्र में जल भर लें. फिर उसमें लाल चंदन या रोली, अक्षत्, लाल पुष्प और शक्कर डाल लें. फिर सूर्य देव को जल अर्पित करें.
उसके बाद एक लाल आसन पर बैठकर सूर्य मंत्र का जाप करें. फिर सूर्य चालीसा, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें. उसके पश्चात घी के दीपक या कपूर से सूर्य देव की आरती करें. किसी ब्राह्मण को जल कलश, पंखा, गेहूं, गुड़, घी, तांबे के बर्तन, लाल वस्त्र, मसूर की दाल आदि का दान कर सकते हैं.
पूजा के बाद दिनभर ब्रह्मचर्य का पालन करें और भगवत भजन करें. फलाहार करें, लेकिन नमक न खाएं. रात्रि के समय में जागरण करें. फिर मीठा भोजन करके व्रत का पारण करें. इस प्रकार से व्रत करने पर सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं.
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