जानिए रवि प्रदोष व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त

प्रदोष व्रत सभी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण दिनों में से एक है क्योंकि ये भगवान शिव को समर्पित है

Update: 2021-10-16 13:50 GMT

प्रदोष व्रत सभी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण दिनों में से एक है क्योंकि ये भगवान शिव को समर्पित है. ये दिन शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में चंद्र पखवाड़े की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है.


इस वर्ष ये शुभ दिन 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा और क्यूंकि ये पड़ रहा है इसलिए रविवार को इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा.

इस दिन, भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद पूजा करते हैं, जब त्रयोदशी तिथि और प्रदोष का समय एक-दूसरे से जुड़ता है, इससे शुभ समय बनता है.

वो स्वस्थ और समृद्ध जीवन के लिए भगवान शिव और माता गौरी की पूजा करते हैं.

इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से आपकी समस्त मनोकामनाएं भी स्वत: ही पूर्ण हो जाएगी. इस दिन लोगों के द्वारा व्रत रखने का भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है.

रवि प्रदोष व्रत 2021: तिथि और शुभ मुहूर्त

दिनांक: 17 अक्टूबर, रविवार

त्रयोदशी तिथि शुरू- 17 अक्टूबर 2021 को शाम 05:39 बजे

त्रयोदशी तिथि समाप्त- 06:07 सायं 18 अक्टूबर 2021

दिन प्रदोष का समय- 05:49 सायं से 08:20 सायं तक

प्रदोष पूजा मुहूर्त- 05:49 सायं से 08:20 सायं

रवि प्रदोष व्रत 2021: महत्व

ये भगवान शिव की पूजा करने के लिए शुभ दिनों में से एक है क्योंकि इस दिन उन्होंने बड़े पैमाने पर विनाश करने वाले दानवों और असुरों को हराया था.

हिंदू ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव और उनके पर्वत नंदी ने प्रदोष काल के दौरान देवताओं को राक्षसों से बचाया था.

यही कारण है कि भक्त प्रदोष काल के दौरान भगवान शिव से परेशानी मुक्त, आनंदमय, शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन के लिए आशीर्वाद लेने के लिए उपवास रखते हैं.

रवि प्रदोष व्रत 2021: पूजा विधि

– प्रदोष के दिन प्रात:काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

– शाम को अभिषेक के लिए शिव मंदिर जाएं.

– शिवलिंग को घी, दूध, शहद, दही, चीनी, गंगाजल आदि से स्नान कराकर 'ऊं नमः शिवाय' का जाप करते हुए अभिषेक किया जाता है.

– महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें, शिव चालीसा और अन्य मंत्रों का पाठ करें.

– आरती कर पूजा का समापन करें.

रवि प्रदोष व्रत 2021: मंत्र

1. ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।

2. तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात्

3. नमो भगवते रुद्राय:

नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.
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