जानें कामाख्या देवी की मान्यता और मंदिर का इतिहास
कहा जाता है जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे थे, वो स्थान शक्तिपीठ (Shaktipeeth) कहलाते हैं. भारत में ऐसे तमाम शक्तिपीठ मौजूद हैं
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कहा जाता है जिन स्थानों पर माता सती के अंग गिरे थे, वो स्थान शक्तिपीठ (Shaktipeeth) कहलाते हैं. भारत में ऐसे तमाम शक्तिपीठ मौजूद हैं, जहां माता सती की पूजा होती है. इन शक्तिपीठों के दर्शन की विशेष मान्यता है. दूर दूर से लोग यहां आकर माता का आशीष प्राप्त करते हैं. इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है कामाख्या माता का मंदिर (Kamakhya Mata Temple) . ये मंदिर असम के गुवाहटी से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कहा जाता है कि यहां माता की योनि का भाग गिरा था. हर साल यहां भव्य अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में शामिल होने के लिए तमाम श्रद्धालु, साधु संत और तांत्रिक दूर दूर से आते हैं.
अंबुबाची मेला (Ambubachi Mela) उस समय लगता है जब मां कामाख्या रजस्वला रहती हैं. 26 जून को रजस्वला समाप्ति के बाद माता के स्नान और विशेष पूजा के बाद मंदिर के पट खोल दिए गए हैं. अगर आप इस बीच असम जाने का प्लान बना रहे हैं, तो माता कामाख्या के दर्शन जरूर कीजिएगा. जानिए इस मंदिर का इतिहास और महिमा.
जानें मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में गिना जाता है और बहुत लोकप्रिय है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच किया गया था. लेकिन हुसैन शाह ने आक्रमण कर मंदिर को नष्ट कर दिया था. 1500 ईसवी के दौरान राजा विश्वसिंह ने मंदिर को पूजा स्थल के रूप में पुनर्जीवित किया. इसके बाद सन 1565 में राजा के बेटे ने इस मंदिर का पुन: निर्माण कराया.
माता के रजस्वला होने का पर्व है अंबुबाची मेला
कहा जाता है कि हर साल यहां माता कामाख्या तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं. इस दौरान यहां अंबुबाची पर्व मनाया जाता है और इस दौरान अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है. कहा जाता है कि इस पर्व के दौरान माता के मंदिर के कपाट खुद ही बंद हो जाते हैं और इस बीच किसी भी भक्त को दर्शन की अनुमति नहीं होती. इस बीच ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है. चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में माता को स्नान करवाकर उनका शृंगार किया जाता है और मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं.
मंदिर में मौजूद है कुंड
इस मंदिर में माता के दर्शन किसी मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि कुंड के रूप में होते हैं. ये कुंड फूलों से ढका जाता है. इस कुंड से हमेशा पानी निकलता रहता है. कामाख्या मंदिर को तंत्र साधनाओं का प्रमुख स्थान माना जाता है. देश के तमाम हिस्सों से हर साल तंत्र मंत्र की साधना करने वाले तांत्रिक यहां अंबुवाची मेले में आते हैं.
प्रसाद में मिलता है लाल कपड़ा
जिन तीन दिनों में माता रानी रजस्वला होती हैं, उन दिनों में मंदिर में सफेद रंग का एक कपड़ा रखा जाता है. तीन दिनों बाद इस कपड़े का रंग लाल हो जाता है. मेले के दौरान जो भी भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें ये लाल कपड़ा प्रसाद के रूप में दिया जाता है.