जानिए चातुर्मास में खान-पान का रखें विशेष ध्यान
हिंदू कैलेंडर व पंचांग के अनुसार फिलहाल आषाढ़ माह चल रहा है और आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास प्रांरभ होता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू कैलेंडर व पंचांग के अनुसार फिलहाल आषाढ़ माह चल रहा है और आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास प्रांरभ होता है. जो कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी (Devshayni Ekadashi 2022) तक रहता है, यानि चातुर्मास पूरे चार महीने का होता है और शास्त्रों में इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है. मान्यता है चातुमार्स शुरू होते ही सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु (Lord Vishnu) योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2022) के लिए निद्रा से बाहर आते हैं, तभी चातुर्मास का समापन होता है. (Chaturmas ka Mahtav) आइए जानते हैं चातुर्मास की तिथि और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में.
कब शुरू हो रहा है चातुर्मास 2022
चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से मानी जाती है और इस बार देवशयनी एकादशी 10 जुलाई 2022, रविवार को है. यानि इस दिन से ही चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है और इसका समापन देवउठनी एकादशी पर होगा जो 4 नवंबर 2022 को पड़ेगी.
चार महीने रहता है चातुर्मास
चातुर्मास देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होता है और कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी पर इसका समापन होता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार चातुर्मास में चार महीने आते हैं.
श्रावण माह
भाद्रपद माह
अश्विन माह
कार्तिक माह
चातुर्मास का अर्थ
चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है चार माह, यानि चातुर्मास कुल चार महीने का होता है. यह चार महीने मनुष्य को साधना और संयम के लिए प्रेरित करते हैं. इस दौरान अलग-अलग तरीकों से भगवान की साधना की जाती है. पूजा-पाठ के लिए यह सबसे उत्तम समय माना गया है. साथ ही इस दौरान पड़ने वाले त्योहार का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि यह चार मनुष्य को त्योहारों के माध्यम से व्यावहारिक और सामाजिक भी बनाते हैं.
क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य?
धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक सृष्टि के संचालक भगवान देवशयनी एकादशी यानि चातुर्मास के प्रारंभ होते ही चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है. कहा जाता है कि यदि इस दौरान कोई शुभ कार्य किया जाए तो वह फलदायी नहीं होता. चातुर्मास के चार महीने धर्म, संस्कृति, सेहतर और परंपरा को एक सूत्र में पिरोते हैं.
चातुर्मास में इस बातों को रखें विशेष ध्यान
चातुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. लेकिन इस दौरान धार्मिक कार्य अवश्य किए जाते हैं. यह समय पूजा-पाठ और उपवास के लिए सबसे उत्तम माना गया है. चातुर्मास की शुरुआत होते ही साधु-संत धार्मिक यात्राएं बंद कर देते हैं और एक स्थान पर रहकर जप-तप करते हैं.
मान्यता है कि चातुर्मास में यदि किसी उपवास की शुरुआत की जाए तो वह बेहद ही फलदायी होता है. इस दौरान किया गया उपवास साधारण समय की तुलना में दोगुना फल प्रदान करता है.
चातुर्मास के 4 महीनों में विवाह, मुंडन, जनेऊ, गृह प्रवेश व बच्चे का नामकरण आदि नहीं करने चाहिए.
जो लोग चातुर्मास में जप-तप व उपवास का पालन करते हैं उन्हें चार महीने के लिए बिस्तर की बजाय जमीन पर सोना चाहिए. ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं.
मान्यता है कि चातुर्मास में चार महीनों के दौरान प्रतिदिन तुलसी का पूजन करना चाहिए. ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और दरिद्रता समाप्त होती है.
चातुर्मास में दान का महत्व
चातुर्मास के दौरान पांच प्रकार के दान करने का विशेष महत्व है. इसमें अन्न दान, वस्त्र दान, छाया दान, श्रमदान और दीपदान शामिल हैं. इसके अलावा मंदिर में जाकर सेवा करने से भी भगवान प्रसन्न होते हैं.
चातुर्मास में खान-पान का रखें विशेष ध्यान
मान्यता है कि चातुर्मास में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस दौरान हिंदू कैलेंडर के अनुसार चार महीने पड़ते हैं. श्रावन के महीने में पालक व पत्तेदार चीजों से परहेज करना चाहिए. भाद्रपद दही व खट्टी चीजें खाना निषेध होता है. जबकि अश्विन माह में दूध और कार्तिक माह में प्याज-लहसुन से परहेज किया जाता है. कहा जाता है कि चातुर्मास में सात्विक भोजन करना स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है.