जानिए केदारनाथ मंदिर के बारे में खास बातें....

आज यानी 06 मई 2022, दिन शुक्रवार को प्रातः ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम के कपाट दर्शनों के लिए खोल दिए गए हैं।

Update: 2022-05-06 10:36 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।  आज यानी 06 मई 2022, दिन शुक्रवार को प्रातः ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम के कपाट दर्शनों के लिए खोल दिए गए हैं। केदारनाथ धाम यानी भगवान शिव की पावन स्थली, जहां देश के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम में भगवान शिव लिंग रूप में विराजमान हैं। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु कण-कण में भगवान शिव की उपस्थिति की अनुभूति करते हैं। उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तीन तरफ विशालकाय पहाड़ों से घिरा केदारनाथ धाम लाखों-करोड़ों भक्तों की आस्था का प्रतीक है। भगवान शिव के इस धाम की कहानी बेहद अनोखी है। मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण कराया था। बाद में आदि शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया। आज से केदारनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। ऐसे में चलिए आज जानते हैं इस मंदिर के बारे में खास बातें....

भगवान भोलेनाथ के इस धाम की कहानी बेहद अनोखी है। मान्यता है कि केदारनाथ में भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने यहां पर पांडवों को दर्शन देकर वंश व गुरु हत्या के पाप से मुक्त किया था। वहीं नौंवी सदी में आदिगुरु शंकराचार्य भी इस स्थान से सशरीर स्वर्ग गए थे। केदारखंड में उल्लेख है कि बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है।
केदारनाथ धाम के बारे में खास बातें
पौराणिक कथाओं के अनुसार, केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर और उनकी प्रार्थनानुसार शिवजी ने सदा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वर प्रदान किया था।
पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए थे भगवान भोले शंकर
इसके अलावा केदारनाथ धाम के बारे में एक कथा ये भी प्रचलित है कि पांडवों की भक्ति के प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें भ्रातृहत्या से मुक्त कर दिया था। कहा जाता है कि महाभारत में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान उनसे रुष्ट थे। पांडव उनके दर्शनों के लिए केदार पहुंचें। इसके बाद शिवजी ने बैल का रूप धर लिया और अन्य पशुओं के बीच चले गए।
तब भीम ने विशाल रूप धारण किया और दो पहाडों पर अपने पैर फैला दिए। इस दौरान सभी पशु निकल गए, लेकिन बैल बने भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद भीम बलपूर्वक बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया।
भगवान शिव पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए और दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। मान्यता है कि तब से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
यहां आकर पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं
भारतवर्ष में स्थापित पांच पीठों में केदारनाथ धाम सर्वश्रेष्ठ है। मान्यता है कि यहां पहुंचने मात्र से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सच्चे मन से जो भी केदारनाथ का स्मरण करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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