जानिए महामृत्युंजय मंत्र जाप और महत्व

महामृत्युंजय मंत्र का संबंध यजुर्वेद के रूद्र अध्याय से है। जिसमें इस मंत्र के द्वारा भगवान शिव की स्तुति की जाती है। शास्त्रों में भगवान भोले भंडारी को मृत्यु पर विजय पाने वाले रूप में पूजा जाता है।

Update: 2022-02-21 03:04 GMT

Mahamrityunjay Mantra: "ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

सनातन धर्म में कई मंत्रों का विशेष महत्व दिया जाता है। इन्हीं मंत्रों में एक मंत्र होता है महामृत्युंजय मंत्र। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने का यह मंत्र कई मायनों में विशेष लाभकारी और कल्याणकारी सिद्ध होता है। इस मंत्र को मृत्यु को टालने और उस पर विजय प्राप्त करने वाला माना गया है। माना जाता है कि मंत्र के जाप से मृत्यु पर विजय हासिल किया जाता सकता है। आइए जानते है इस मंत्र का खास बातें...
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति
महामृत्युंजय मंत्र का संबंध यजुर्वेद के रूद्र अध्याय से है। जिसमें इस मंत्र के द्वारा भगवान शिव की स्तुति की जाती है। शास्त्रों में भगवान भोले भंडारी को मृत्यु पर विजय पाने वाले रूप में पूजा जाता है। शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले इस मंत्र को ऋषि मार्कंडेय के द्वारा जप किया गया था। शिवपुराण के अनुसार ऋषि मार्कंडेय के पिता ऋषि मृकण्डु अपनी पत्नी के साथ पुत्र की कामना के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पुत्र प्राप्ति के लिए वरदान दिया। लेकिन पुत्र के लिए वरदान देने के लिए उनके समाने दो विकल्प रखें जिसमें पहला विकल्प यह था कि पुत्र अल्पायु और महाबुद्धिमान होगा जबकि दूसरा विकल्प मंद बुद्धि और दीर्घायु वाला पुत्र होगा। तब ऋषि मृकण्डु ने पहले वाले विकल्प को चुनते हुए अल्पायु और महाबुद्धिमान बालक की प्राप्ति की जिसकी आयु 16 वर्ष की थी। जैसे-जैसे ऋषि मार्कंडेय बड़े हुए और अपनी 16 वर्ष की आयु के करीब पहुंचे तब उन्हें इस वरदान के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसके बाद ऋषि मार्कंडेय ने भगवान शिव को घोर तपस्या करनी शुरू कर दी। समय नजदीक आने पर जब यमदेव उन्हें लेने आए तो ऋषि मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए और यमदेव के साथ जाने से इंकार कर दिया। इसके बाद भगवान शिव ने ऋषि मार्कंडेय को अमरता का वरदान दिया और इसी के साथ उन्होंने महामृत्युंजय का गुप्त मंत्र प्राप्त किया। ऋषि मार्कंडेय के अलावा दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को भी भगवान शिव से इस मंत्र को प्राप्त किया और हजारों दैत्यों को फिर से जिंदा किया था
महामृत्युंजय मंत्र के प्रत्येक शब्द के अर्थ
ॐ : प्रणव
त्र्यम्बकं : तीन नेत्रों वाले भगवान शिव
यजामहे: हम आपकी पूजा अर्चना करते हैं, आपका सम्मान करते हैं
सुगंधिम: सुगंधित,धीमी खुशबु
पुष्टि : समृद्ध जीवन से परिपूर्ण करें
वर्धनम : शक्ति प्रदान करने वाला, पोषक, स्वास्थ्य एवं धन में वृद्धि करने वाला
उर्वारुकम् : ककड़ी
इव : जिस तरह से
बन्धनात् : तना
मृत्योः मृत्यु से
मुक्षीय : मुक्त करें
मा : न
अमृतात् : मोक्ष, अमर
महामृत्युंजय मंत्र जाप के नियम
शास्त्रों में मंत्र जाप करते समय स्पष्ट रूप से उच्चारण का बहुत महत्व बताया गया है। इसलिए जाप करते समय उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखें। जाप करते समय माला से ही जाप करें क्योंकि संख्याहीन जाप का फल प्राप्त नहीं होता है। प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप पूरा करके ही उठे। मंत्र का उच्चारण करते समय स्वर होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। धीमे स्वर में आऱाम से मंत्र जाप करें।महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें। जाप से पहले भगवान के समक्ष धूप दीप जलाएं। जाप के दौरान दीपक जलता रहे। इस मंत्र का जाप करते समय शिवजी की प्रतिमा,तस्वीर,शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में से कोई एक को अपने पास अवश्य रखें। मंत्र जाप हमेशा कुशा के आसन पर किया जाता है। इसलिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कुशा के आसन पर करें। अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध से अभिषेक करते रहें। जितने दिन जाप करना हो उतने दिनों तक तामसिक चीजों जैसे मांस, मदिरा लहसुन, प्याज या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ आदि से दूर रहें।
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