जानिए काशीविश्वनाथ मंदिर 241 साल बाद होगा मंदिर का कायाकल्प, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं

काशीविश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. जो कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है. अति प्रचीन मंदिर का हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है.

Update: 2021-12-13 07:20 GMT

जानिए काशीविश्वनाथ मंदिर 241 साल बाद होगा मंदिर का कायाकल्प, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | काशीविश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. जो कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है. अति प्रचीन मंदिर का हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट (Kashi Vishwanath Dham Project) का आज उद्घाटन करेंगे. पीएम मोदी के इस कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए जबरदस्त तैयारियां की गई हैं. काशी विश्वनाथ मंदिर पर कई बार हमले भी हुए. इसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था.

241 साल बाद काशी कायाकल्प
गंगा किनारे से लेकर गर्भगृह तक काशी विश्वनाथ धाम का यह नया स्वरूप 241 साल बाद विश्व के सामने आ रहा है. इतिहास में उल्लेखित है कि काशी विश्वनाथ मंदिर पर वर्ष 1194 से लेकर 1669 तक कई बार हमले हुए. 1777 से 1780 के बीच मराठा साम्राज्य की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. लगभग ढाई दशक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च 2019 को मंदिर के इस भव्य दरबार का शिलान्यास किया था.
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 मान्यता
ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि प्रलय भी इस मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. प्रलय के समय इसे भगवान शिव अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं. यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बताई जाती है. इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके शिव जी को प्रसन्न किया था और फिर उनके सोने के बाद उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होंने सारे संसार की रचना की.
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इतिहास
उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो कि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है. कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है. जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था. जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया.



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