जानिए कैसे शुरू हुई रोजा रखने की परंपरा
रमजान का पाक महीना जल्द ही शुरू होने वाला है। यह महीना मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बहुत खास होता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रमजान का पाक महीना जल्द ही शुरू होने वाला है। यह महीना मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बहुत खास होता है। इस पाक महीने में मुस्लिम लोग रोजा रखते हुए अल्लाह की इबादत करते हैं। इस साल रमजान का महीना 2 अप्रैल 2022 से शुरू होगा जो 1 मई को ईद के साथ समाप्त होंगे। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस महीने में 29-30 दिन तक रोजा रखा जाता है। रोजे को अरबी भाषा में सौम कहते हैं, जिसका मतलब रुकना या ठहरना होता है। मान्यताओं के अनुसार, इस पवित्र माह में ही अल्लाह से पैगंबर मोहम्मद साहब को कुरान की पहली आयतें मिली थीं। ऐसा कहा जाता है कि इस पाक महीने में अल्लाह रोजा रखने वालों के पिछले सभी गुनाह माफ कर देता है। इस महीने में अल्लाह की रहमत बरसती हैं।
कैसे शुरू हुई रोजा रखने की परंपरा
ऐसा कहा जाता है कि इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी से शुरू हुई थी। कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्श किया जाता है जैसे तुमसे पहले की उम्मत पर फर्ज था। मोहम्मद साहब मक्के से हजरत कर मदीना पहुंचने के एक साल बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म आया। इस प्रकार से दूसरी हिजरी रोजा रखने की शुरुआत हुई।
किसको है रोजा रखने से छूट
इस्लाम मानने वाले हर बालिग पर रोजा फर्ज है। हालांकि, जो बीमार हैं, यात्रा पर हैं, जो औरतें गर्भवती हैं या माहवारी है, उन्हें रोजा रखने की छूट है। इसके साथ ही बच्चों को भी रोजा रखने से छूट है।
कैसे रखते हैं रोजा
रोजा रखते समय, सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाना या पीना चाहिए। रमजान में सभी अनुयायी पांचों वक्त की नवाज अदा करते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस महीने में रोजा रखने और इबादत करने से कई गुना ज़्यादा फल मिलता है। इस पाक महीने में लोग सभी गलत कामों को त्याग कर नेकी और धर्म की राह पर चलते हैं, जिससे वे अल्लाह के नजदीक पहुँच सकें। इस महीने में लोग धैर्य और संयम का पालन करते हैं और जरूरतमंदों की सेवा करते हैं।
सहरी और इफ्तार
रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार का बहुत महत्व है। रमजान के दिनों में सुबह, सूरज उगने से पहले जब भोजन किया जाता है तो उसको सहरी कहते हैं। वहीं दिनभर रोजा रखने के बाद शाम के समय, सूरज ढलने के बाद रोजा खोला जाता है, इसे इफ्तार कहा जाता है।