जानिए संत कबीरदास का जीवन का एक रोचक किस्सा

ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर दास का जन्म हुआ था. इस दिन को कबीर जयंती (Kabir Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. आज कबीर जयंती है

Update: 2022-06-14 07:19 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर दास का जन्म हुआ था. इस दिन को कबीर जयंती (Kabir Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. आज कबीर जयंती है. कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे इसलिए उनकी जयंती के दिन संत कबीर की याद में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. उनकी लिखी रचनाओं को पढ़ा जाता है. कहा जाता है कि कबीर दास के समय पर अंधविश्वास और कुरीतियां अपने चरम पर थीं, इसलिए कबीर ने अंधविश्वास और कुरीतियों के विरुद्ध समाज सुधार पर बहुत जोर दिया. कबीर दास को समाज सुधारक के रूप में भी जाना जाता है. उनके लिखे दोहों को मंदिरों और मठों पर गाया जाता है. आज संत कबीर दास जयंती के मौके पर हम आपको बताएंगे उनके जीवन का वो रोचक किस्सा, जिसमें उन्होंने बड़े ही साधारण तरीके से एक युवक को सत्संग का महत्व समझाया था.

जब युवक ने संत कबीरदास से पूछा सत्संग क्यों जरूरी है
कहा जाता है कि एक बार एक युवक संत कबीर के पास पहुंचा और बोला कि गुरुदेव मेरे माता पिता मुझे जबरदस्ती प्रवचन सुनने के लिए बाध्य करते हैं, जब कि मैंने जीवन में खूब पढ़ाई लिखाई की है और सही और गलत का भेद अच्छे से समझता हूं. कृपया आप मुझे बताएं कि क्या मुझे सत्संग सुनने की जरूरत है? कबीरदास ने उस युवक की बात को सुना और एक हथौड़ी उठाकर जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी. युवक को लगा कि संत ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया. इसके बाद युवक वहां से उठकर चल दिया.
कबीरदास ने हथौड़ा खूंटी पर मारकर दिया जवाब
अगले दिन वो फिर से कबरीरदास के पास आया और अपनी बात को दोहराया. कबीरदास ने भी पहले दिन की तरह ही बगैर कुछ बोले हथौड़ी को लेकर जमीन पर गड़े खूुंटे पर मार दिया. युवक को लगा कि शायद गुरु जी का मौन व्रत है, इसलिए वो उसकी बात का जवाब नहीं दे रहे. अगले दिन उसने फिर से कबीरदास को अपनी बात कही और कबीरदास ने भी उत्तर देने की बजाय फिर से वही किया. इस बार वो लड़का नाराज हो गया और बोला कि मैं आपसे बार बार अपनी बात कह रहा हूं, फिर भी आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं देते.
इस तरह युवक को समझाया सत्संग का महत्व
तब कबीरदास ने कहा कि तुम्हें ये कैसे लगा कि मैंने तुम्हारी बात का जवाब नहीं दिया. मैंने हर बार उत्तर दिया है, लेकिन तुम ही इसे समझ नहीं पाए. मैं हथौड़े से चोट करके खूंटे की पकड़ को मजबूत बना रहा हूं, ताकि जानवर वगैरह इससे बंधने के बाद खूंटे को चाहकर भी बाहर की ओर खींच न पाएं. यही काम हमारे जीवन में सत्संग का होता है. सत्संग के दौरान कहे गए प्रवचन हथौड़े की तरह होते हैं जो आपके मन की खूंटी पर प्रहार करते हैं. इससे आपके मन और पवित्र भावनाओं की पकड़ मजबूत होती जाती है. ऐसे में चाहकर भी कोई आपको गलत राह पर खींच नहीं पाता. इसलिए जीवन में सत्संग और प्रवचन सुनने का विशेष महत्व है. आप चाहें कितना ही पढ़ लिख लें, लेकिन समय समय पर प्रवचन जरूर सुनते रहें.
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