जानिए भौम प्रदोष व्रत कथा के बारे में....

सावन मा​ह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 09 अगस्त दिन मंगलवार को है. मंगलवार के प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) या मंगल प्रदोष व्रत कहते हैं

Update: 2022-08-08 05:04 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।    सावन मा​ह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 09 अगस्त दिन मंगलवार को है. मंगलवार के प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) या मंगल प्रदोष व्रत कहते हैं. यह सावन का भौम प्रदोष व्रत है. इस दिन मंगला गौरी व्रत भी है. जो लोग भौम प्रदोष व्रत रखते हैं, उनको उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है और आर्थिक संकटों से मुक्ति भी मिलती है. प्रदोष व्रत के दिन शाम के समय में भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं. उस समय आपको भौम प्रदोष व्रत कथा का पाठ करना चाहिए. इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं भौम प्रदोष व्रत कथा के बारे में.

भौम प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक वृद्ध महिला अपने बेटे के साथ रहती थी. वह हनुमान जी की परम भक्त थी. वह सदैव हनुमान जी की पूजा करती और व्रत रखती थी. एक दिन हनुमान जी ने उसकी परीक्षा लेनी की सोची.
हनुमान जी ​एक ब्राह्मण का रूप धारण करके उस वृद्धा के घर के दरवाजे पर पहुंचे. वे जोर जोर से कहने लगे कि कोई है हनुमान भक्त, जो उनकी इच्छा को पूरा कर सकता है. यह बात सुनकर वह वृद्ध महिला घर के बाहर आई तो उस ब्राह्मण साधु को देखा.
उसने उनकी इच्छा पूछी तो हनुमान जी ने कहा कि वह भूखे हैं. तुम जमीन लीप दो, वहां पर बैठकर भोजन करेंगे. उस महिला ने कहा कि वह तो यह काम नहीं कर पाएगी, आपको कोई और इच्छा बताएं. तब हनुमान जी ने उससे तीन बार वचन लिया कि वह अपना वचन पूरा करेगी.
इसके बाद हनुमान जी ने उससे कहा कि तुम अपने पुत्र को बुलाओ, वे उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन पकाएंगे और फिर भोजन करेंगे. वह वृद्धा अपने वचन से बंधी हुई थी, उसने बेटे को बुलाया.
हनुमान जी ने उस वृद्धा से ही उसके पुत्र को जमीन पर पेट के बल ​लेटाया और पीठ पर आग जलवाई. इसे बाद वह वृद्धा अपने कमरे में चली गई. इधर हनुमान जी ने भोजन बनाकर उस वृद्धा को आवाज लगाई कि भोजन तैयार है. तुम अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भी भोग लगा ले.
यह सुनकर वृद्धा ने कहा कि हे ब्राह्मण साधु! ऐसा बोलकर तुम मेरे मन को और दुखी मत करो. हनुमान जी के बार बार कहने पर उसने अपने बेटे को पुकारा तो दौड़कर मां के पास आ गए. उसे जीवित देखकर वृद्धा आश्चर्य में पड़ गई. तब वह उस ब्राह्मण साधु के चरणों में ​नतमस्तक हो गई. इसके बाद हनुमान जी अपने वास्तविक स्वरूप में आए और उसे दर्शन दिए.
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