जानिए मासिक कार्तिगाई के शुभ दिन तिथि, समय, और पूजा विधि के बारे में

मासिक कार्तिगाई को कार्तिगाई दीपम भी कहा जाता है

Update: 2021-09-24 15:40 GMT

मासिक कार्तिगाई को कार्तिगाई दीपम भी कहा जाता है. ये त्योहार तमिलनाडु में मनाया जाता है और हिंदुओं का एक लोकप्रिय त्योहार है. कार्तिकाई के महीने में शुभ दिन मनाया जाता है जब कार्तिकाई नक्षत्र रात्रीमना के दौरान प्रबल होता है. इस माह 25 सितंबर को मासिक कार्तिगई के रूप में मनाया जाएगा.


ये त्योहार महीने में एक बार मनाया जाता है. इस दिन, तमिल हिंदू सूर्यास्त के बाद अपने घरों को कोलम और दीपक के तेल से सजाते हैं. भक्त भगवान शिव और भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं. एक विशेष दिन पर, अडाई, वडाई, अप्पम, नेल्लू पोरी और मुत्तई पोरी आदि जैसे भोजन भगवान को अर्पित करने के लिए तैयार किए जाते हैं.

मासिक कार्तिगाई: तिथि और समय

भगवान शिव और भगवान मुरुगन का पर्व 25 सितंबर 2021 को मनाया जाएगा. कार्तिगाई रविवार यानी 25 सितंबर को दोपहर 12:18 बजे से शुरू होकर 26 सितंबर को दोपहर 2:50 बजे समाप्त होगी.

मासिक कार्तिगाई: पूजा विधि

इस दिन भक्त अपने घर की साफ-सफाई करते हैं और उसे फूलों से सजाते हैं. बाद में वो गुड़ का दीपक बनाकर घी से जलाते हैं. सभी भोजन तैयार होने के बाद, पूजा की जाती है और भगवान मुरुगन और भगवान शिव की आरती की जाती है.

मासिक कार्तिगाई: महत्व

भगवान शिव की सर्वोच्चता को चिह्नित करने के लिए ये शुभ दिन मनाया जाता है क्योंकि भगवान ब्रह्मा और भगवान विशु के एक-दूसरे के वर्चस्व पर झगड़ने के बाद भगवान शिव एक अंतहीन उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए. झगड़े को समाप्त करने और फिर से शांति लाने के लिए भगवान शिव एक सर्वोच्च ज्योति (प्रकाश) के रूप में उभरे, और ये प्रकाश ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुआ.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, उस दिन भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भगवान मुरुगन का जन्म हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि भगवान छह अलग-अलग हिस्सों में अस्तित्व में आए थे. प्रत्येक भाग को अलग-अलग नाम दिया गया था. आखिरकार, देवी पार्वती ने सभी छह संस्थाओं को मिलाकर एक छोटे लड़के का रूप दिया. उस छोटे लड़के को कार्तिकेय कहा जाता था, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के दूसरे पुत्र थे.

ये त्योहार तिरुवन्नामलाई पहाड़ियों में बहुत प्रसिद्ध है. भगवान शिव के इस विशेष दिन पर पहाड़ियों पर एक विशाल दीपक जलाया जाता है और फिर उनकी पूजा की जाती है.

नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.
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