जानिए हनुमान जी की आरती की सही विधि के बारे में

हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान हनुमान कलयुग के देवता हैं। हनुमान जी की पूजा, आराधना और उपवास के लिए मंगलवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है।

Update: 2022-06-21 06:28 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान हनुमान कलयुग के देवता हैं। हनुमान जी की पूजा, आराधना और उपवास के लिए मंगलवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है। ऐसे में वीर बजरंगी की कृपा पाने के लिए इस दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि पान, सिंदूर, लाल फूल, चोला, लड्डू और अक्षत को हनुमान जी की पूजा में जरूर इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा हनुमान जी की पूजा के बाद कपूर जलाकर आरती करना बहुत ही शुभ माना जाता है। आज मंगलवार का दिन पवनपुत्र हनुमान जी की पूजा के लिए उत्तम माना जाता है क्योंकि इस दिन ही बजरंगबली का जन्म हुआ था। संकटमोचन हनुमान जी की कृपा जिस पर हो जाती है, उसे कोई भय, रोग, दुख, कष्ट या संकट नहीं रहता है। रामभक्त हनुमान जी कलयुग के जाग्रत देव माने जाते हैं। आज आप हनुमान जी की पूजा करते हैं, तो आपको विधिपूर्वक उनकी आरती भी करनी चाहिए। आइए जानते हैं हनुमान जी की आरती की सही विधि के बारे में।

हनुमान जी की आरती की सही विधि
प्रतिदिन या फिर मंगलवार और शनिवार को सुबह और शाम के समय में हनुमान जी की आरती करनी चाहिए।
यदि आप सुबह आरती नहीं कर सकते हैं तो प्रदोष काल में आरती करें। यहां प्रदोष का अर्थ है जब सूर्य ढल रहा हो और शाम होने वाली हो।
आरती के लिए घी का दीपक जला लें।
फिर आरती का प्रारंभ शंख ध्वनि से करें। शंख कम से कम तीन बार बजाएं।
आरती के समय घंटी भी बजानी चाहिए।
आरती का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
आरती के लिए आप घी के दीपक या फिर कपूर का भी उपयोग कर सकते हैं।
ऐसे करें आरती का प्रारंभ
आरती का प्रारंभ रामचरितमानस के सुंदरकांड के इस मंत्र से करें। इस मंत्र में पवनपुत्र हनुमान जी की वंदना और गुणगान किया गया है।
हनुमान मंत्र
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥
कर्पूरगौरं मंत्र
आरती का समापन कर्पूरगौरं मंत्र से किया जाता है। इसके बाद हनुमान जी की जयकारा लगाएं।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
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