जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अजा एकादशी व्रत (Aja Ekadashi) भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु या फिर उनके ऋषिकेष स्वरूप की पूजा की जाती है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, इस साल अजा एकादशी व्रत 23 अगस्त दिन मंगलवार को है. इस दिन जब आप भगवान विष्णु की पूजा करें तो उस समय अजा एकादशी व्रत कथा अवश्य सुनें या पढ़ें. इस व्रत कथा को पढ़ने या सुनने मात्र से ही पापों का नाश होता है. जो भगवान ऋषिकेष की पूजा करता है, उसे वैकुंठ की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं अजा एकादशी व्रत कथा के बारे में.
अजा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में बताने को कहा. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि भाद्रपद कृष्ण एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जानते हैं. अजा एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार से है-
एक समय में हरिशचंद्र नाम का एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था. किसी कारणवश उसने अपने राज्य को छोड़ दिया, पत्नी, बच्चे और स्वयं को भी बेच दिया. राजा हरिशचंद्र एक चांडाल के यहां काम करता था और मृतकों के वस्त्र लेता था. वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलता रहा. जब वह एकांत में होता था तो इन दु:खों से मुक्ति पाने का मार्ग सोचता रहता था. वह सोचता था कि क्या ऐसा करे, जिससे उसका उद्धार हो सके.
वह काफी समय तक इस कार्य में लगा रहा. एक दिन वह चिंतित होकर बैठा था, तभी गौतम ऋषि वहां आए. राजा ने उनको प्रणाम किया. उसने गौतम ऋषि को अपने दुखों के बारे में बताया और इससे उद्धार का मार्ग पूछने लगा.
ऋषि ने कहा कि तुम भाग्यशाली हो क्योंकि आज से 7 दिन बाद भाद्रपद कृष्ण एकादशी यानि अजा एकादशी व्रत आने वाली है. तुम इस व्रत को विधिपूर्वक करो. तुम्हारा कल्याण होगा. इतना कहने के बाद गौतम ऋषि वहां से चले गए.
सात दिन बाद उस राजा ने अजा एकादशी का व्रत रखा और ऋषि के बताए अनुसार ही भगवान विष्णु का पूजन किया और रात्रि जागरण किया. अगले दिन सुबह पारण करके व्रत को पूरा किया. भगवान विष्णु की कृपा से उसके समस्त पाप नष्ट हो गए और उसे दुखों से मुक्ति मिल गई.
स्वर्ग से पुष्प वर्षा होने लगी. उसने देखा कि उसका मरा हुआ पुत्र फिर से जीवित हो गया है और उसकी पत्नी पहले की तरह रानी के समान दिख रही है. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे अपना राज्य दोबारा मिल गया. जीवन के अंत में उसे परिवार सहित स्वर्ग स्थान प्राप्त हुआ. यह अजा एकादशी व्रत के पुण्य फल का प्रभाव था.
जो व्यक्ति अजा एकादशी व्रत की कथा को सुनता है, उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है.