घर में पूजा कक्ष बनाते समय जरूर ध्यान रखें ये बातें, वरना नहीं मिलेगा पूजा का फल

अधिकतर घरों में देवी-देवता को स्थान जरूर दिया जाता है। इन्हें व्यवस्थित तरीके से पूजा घर में रखते हैं और नियमित रूप से आरती, भोग आदि करते हैं। वास्तु के अनुसार माना जाता है कि घर में मंदिर होने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है।

Update: 2022-07-05 03:27 GMT

अधिकतर घरों में देवी-देवता को स्थान जरूर दिया जाता है। इन्हें व्यवस्थित तरीके से पूजा घर में रखते हैं और नियमित रूप से आरती, भोग आदि करते हैं। वास्तु के अनुसार माना जाता है कि घर में मंदिर होने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। लेकिन पूजा घर की सही दिशा, स्थान में होना बेहद जरूरी है। वास्तु के नियमों का पालन न करने से पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है। जानिए घर में पूजा घर बनवाते समय किन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

इस दिशा में हो देवी-देवता का मुख

वास्तु के अनुसार, अपने पूजा कक्ष चाहे किसी भी दिशा में हो। लेकिन देवी-देवता के मुख की दिशा उत्तर-पूर्व की ओर होनी चाहिए। पूजा करते समय इसे शुभ माना जाता है।

पूजा घर में कराएं इस रंग का पेंट

वास्तु के अनुसार, पूजा कक्ष एक शांत जगह है, इसलिए इसका रंग भी शांत होना चाहिए। इसलिए पूजा घर में सफेद, पीला, लाइट ब्लू, नारंगी जैसे रंगों को चुन सकते हैं।

इन जगहों पर न बनाएं पूजा कक्ष

अगर वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष बनाना चाहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि वह सीढ़ियां और बाथरूम से दूर हो।

जमीन में न रखें देवी-देवता

वास्तु के अनुसार, देवी-देवता को जमीन में न रखें। बल्कि अपनी मूर्तियों के लिए एक मंच, चौकी ले आएं। अपने देवताओं को जमीनी स्तर से ऊपर रखें।

इस तरह न रखें मूर्तियां

वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूजा कक्ष में मूर्तियों को दीवार से सटाकर न रखें। मूर्तियों और दीवार के बीच एक इंच और आधा इंच जगह छोड़ दें।

दीपक और धूपबत्ती की सही दिशा

पूजा कक्ष में दीपक और मोमबत्तियां जलाना एक महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तु के अनुसार, घर में धूपबत्ती और घी जलाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। इसलिए दीपक को दक्षिण-पूर्व में मूर्तियों के सामने रखें।

न रखें ऐसी मूर्तियां

वास्तु के अनुसार, देवी- देवताओं की टूटी-फूटी मूर्तियों रखने से बचना चाहिए। क्योंकि ये अशुभ होता है और वास्तु दोष भी लगता है। इसलिए क्षतिग्रस्त मूर्तियों को बहते हुए जल में विसर्जित कर देना चाहिए या पीपल के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए।


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