घर का सबसे महत्वणपूर्ण स्थान होता है रसोई। अगर यह वास्तु के अनुरूप होती है तो न केवल रसोई में अन्नपूर्णा देवी का वास होता है बल्कि परिवार के सदस्यत भी स्व्स्थ और मस्त रहते हैं।
1. चूल्हे को सदैव रसोईघर के आग्नेयकोण में ही रखना चाहिए।
2. भोजन को बनाते समय उसे बनानेवाले का मुख पूरब की रहना चाहिए । यदि यह सम्भव नहीं हो तो वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम में इस रखें। आज की परिस्थिति में , जब कि लोगों को बिल्डर द्वारा बनाया घर, अपार्टमेंट आदि खरीद कर रहना पड़ता है, सब जगह यह सम्भव नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में रसोईघर के आग्नेयकोण में एक लाल बिजली का बल्ब जलाना चाहिए और भोजन बनाने से पूर्व अग्निदेव से प्रार्थना करनी चाहिए “हे अग्निदेव ! हे विष्णु भगवान् ! मैं मजबूरी में सही स्थान पर भोजन नहीं बना पा रहा हूँ ,कृपाकर मुझे क्षमा करेंगे ।”
3. रसोईघर में पानी को आग्नेय कोण में न रखें और चूल्हे से उसको यथासम्भव दूर ही रखें।
4. जो व्यक्ति भोजन बनाता है उसके ठीक पीछे दरवाजा न हो। यदि ऐसा है तो उस व्यक्ति को थोड़ा इधर- उधर हो जाना चाहिए , यदि यह संभव हो तो।
5. रसोई घर में पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो वहाँ भगवान् का चित्र आदि न रखें ।
6. यदि सम्भव हो तो रसोईघर में ही भोजन करना चाहिए। यदि ऐसा न हो सके तो ऐसी जगह बैठकर भोजन करना चाहिए जहाँ से चूल्हे की आग दिखती हो।
7. यदि संभव हो तो रसोईघर में पूर्व की ओर खिड़की या रौशनदान बनवावें।
8. भोजन बनाने के बाद उसे भगवान् का भोग समझ कर उन्हें अर्पित कर दें और फिर प्रसाद मानकर स्वयं भोजन करना चाहिए । भोजन करने के बाद मन ही मन अग्निदेव और अन्नपूर्णा माता को धन्यवाद दें ।