Kajari Teej 2024: कजरी तीज व्रत के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, मिलेगा, आशीर्वाद
Kajari Teej 2024: हिंदू धर्म में कजरी तीज का विशेष महत्व माना जाता है. यह त्योहार भी सावन महीने की हरतालिका तीज की तरह ही मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सुहाग की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं. इस व्रत में कजरी तीज व्रत कथा जरूर पढ़ी जाती है, वरना व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है. इस व्रत को करने वाले भक्तों के लिए इस कथा का पाठ करना अनिवार्य माना जाता है. कजरी तीज के शुभ और पावन अवसर पर आइए पढ़ते हैं कजरी तीज की व्रत कथा.
कजरी तीज व्रत कथा
प्राचीन समय में एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे. उनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि केवल दो समय के भोजन का प्रबंध भी बड़ी मुश्किल से हो पाता था. ऐसे में जब भाद्रपद महीने में तृतीया तिथि की कजरी तीज आई, तो ब्राह्मण की पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा. ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा, आज मेरा कजली माता का व्रत है. आप कहीं से चने का सत्तू ले आइए.
इस पर ब्राह्मण बोला, घर में जरा सा भी धन नहीं है, मैं सत्तू कहां से लाऊं? तब ब्राह्मणी ने कहा, ये मैं नहीं जानती, चाहे आप चोरी करो या चाहे डाका डालो, लेकिन चने का सत्तू लेकर आओ. यह बात सुनकर ब्राह्मण परेशान हो गया कि आखिर बिना धन के वह सत्तू कहां से लेकर आए. रात का समय था. ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान पर पहुंचा. वहां उसने देखा कि साहूकार के साथ-साथ उसके सभी नौकर भी सो रहे थे, तब वह चुपके से दुकान में घुस गया. सत्तू बनाने के लिए उसने वहां से चने की दाल, घी, शक्कर लिया सबको सवा किलो तोल लिया. इतने में ही खटपट की आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे. तब साहूकार की भी नींद खुल गई. उसने ब्राह्मण को देखा और उसको पकड़ लिया. तब ब्राह्मण ने बहुत विनम्रता से साहूकार से कहा कि मैं चोर नहीं हूं.
मेरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा है. मैं केवल सवा किलो सत्तू लेने आया था, लेकिन सत्तू न मिलने पर सत्तू बनाने की सवा किलो सामग्री लेकर जा रहा था. आप मेरी तलाशी लेकर देख लीजिए. तब साहूकार ने उसकी तलाशी ली, लेकिन उसके पास सत्तू के सामान के अलावा कुछ नहीं मिला.
ब्राह्मण ने कहा, हे साहूकार! चांद निकल आया है. ब्राह्मणी मेरा इंतजार कर रही होगी. तब ब्राह्मण की स्थिति देख साहुकार की आंखें भर आईं. नम आंखों से साहूकार ने कहा, आज से आपकी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानता हूं. इसके बाद उसने ब्राह्मण को सत्तू, आभूषण-गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया. सबने मिलकर कजली माता की पूजा की. इसके बाद ब्राह्मण दंपति पर माता की कृपा हुई और उसके अच्छे दिन आ गए.
मान्यता के अनुसार, इस कथा जो भी पढ़ता है और सुनता है, उसका सब तरह से कल्याण होता है. इस कथा को पढ़ने-सुनने वाले के साथ-साथ सब लोगों के वैसे ही दिन फिरे, जिस तरह से ब्राह्मण के दिन फिरे थे. कजली माता की कृपा सब पर बरसे.