मन को साधना है जरूरी शरीर के कष्ट से बडा मन को कष्ट है। कहते है मन को साधना ही मुश्किल काम है। व्रत, उपवास, चिंतन, ध्यान, दान और प्रार्थना से मन को नियंत्रित करने की कोशिशें चलती रहती हैं। निरंतर आत्म-चिंतन और सदाचरण से चंचल मन पर नियंत्रण किया जा सकता है।
मन - शक्ति और प्राण - शक्ति
आत्मा को देखने की दो शक्तियां है। एक है मन शक्ति और दूसरी प्राण-शक्ति। मन की दो श्रेणियां हैं, सिद्ध मन और असिद्ध मन। मन की अनेक शक्तियां हैं। संकल्प मन का धर्म है और इच्छा संकल्प की जननी है। यदि इच्छाशक्ति प्रबल हो तो लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में तेजी आ जाती है और परिणाम तुरंत प्राप्त हो जाते हैं।
पतन का कारण
मन कमजोर होता है तो मनुष्य भोगों में फंस कर अपने जीवन को व्यर्थ कार्यो में खपाता चला जाता है। मन जब लक्ष्य ये थोडा भी भटकता है, तब वह हाथ से गिरी हुई गेंद की तरह हो जाता है। जिस तरह गेंद एक बार हाथ से छूटती है तो सीढीयों से नीचे लुढकती जाती है,उसी तरह व्यक्ति का पतन भी तेजी से होने लगता है।
जरूरत और इच्छा
यह सच है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। स्वस्थ शरीर के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। इच्छा मन की वस्तु है। वह अनंत की ओर ले जाती है। आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव है, लेकिन इच्छाओं की नहीं।
मन को जीतना है जरूरी
मन ही सुख-दुख का कारण है। मन पर विजय पाना आवश्यक है। कहा गया है कि, जिसने मन को जीत लिया उसने दुनिया को जीत लिया। जैसे जैसे जीवन में संतोष और त्याग बढेगा, मन पवित्र हो जाएगा और जीवन में खुशियां बढती ही जाएगी।
व्रत-तप और दान का महत्व
शारीरिक कष्ट से ज्यादा बडा मन का कष्ट होता है। इस कष्ट से बचने के लिए मन, वचन और कर्म का एक होना जरूरी है। व्रत से हम सीखते हैं कि इच्छाओं पर संयम कैसे रखा जाए। प्रार्थना का भी इसमें बहुत बडा योगदान है। दान से जीवन में संतोष और त्याग में वृद्धि होती है।