रोचक तथ्य: कन्फ्यूशियस के शिष्य 'दुआनमू सी' की बातें सुनकर सभी लोग रह गए हैरान
चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के प्रिय शिष्यों में एक थे दुआनमू सी।
चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के प्रिय शिष्यों में एक थे दुआनमू सी। दुआनमू तब के श्रेष्ठ वक्ता भी थे और जिज्ञासु भी। वह अपने गुरु के पास अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए रोज जाते थे। एक बार एक ईर्ष्यालु व्यक्ति ने उनसे कहा कि उनके गुरु का ज्ञान इतना गहरा तो नहीं है कि हमेशा उन्हीं के आसपास मंडराया जाए। दुआनमू ने जवाब दिया कि आकाश मेरे सिर पर है लेकिन मैं उसकी ऊंचाई नहीं नापता, धरती मेरे पैरों के नीचे है लेकिन मैंने उसकी गहराई नहीं नापी। मैं तो उस प्यासे की तरह हूं जो नदी के किनारे जाता है, दो अंजुरी पानी पीकर वापस हो जाता है। उसका नदी की गहराई से कुछ लेना-देना नहीं होता।
इसी तरह की अपनी हाजिर जवाबी के कारण वह बहुत लोकप्रिय थे। ज्ञानार्जन और ज्ञान को साझा करने में उन्हें असीम आनंद मिलता। एक बार शासक और शासित पर चर्चा चली। उन्होंने अपने गुरु से पूछा, 'सबसे अच्छा शासन क्या है?' कन्फ्यूशियस बोले, 'जिस शासक के पास अनाज का भंडार हो, सेना आधुनिक शस्त्रों से लैस हो और जनता का शासक में विश्वास हो, वही सबसे अच्छा शासन है।' फिर दुआनमू ने पूछा, 'अगर इन तीनों में किसी एक का त्याग करना हो तो किसे त्यागना चाहिए?' कन्फ्यूशियस बोले, 'हथियारों की खरीदारी त्याग देनी चाहिए।'
फिर उन्होंने पूछा, 'अगर बचे हुए दोनों में से एक को त्यागना जरूरी हुआ तो?' कन्फ्यूशियस बोले, 'अनाज के संग्रह का त्याग करके जनता का विश्वास बनाए रखना चाहिए, क्योंकि मनोबल ऊंचा होने पर युद्ध में हार नहीं होती है। लेकिन शासक और शासित के बीच विश्वास की कमी होने पर राज्य और शासक- दोनों का अंत हो जाता है।' बहुत साल पहले कही गई उनकी बातें आज भी प्रासंगिक हैं। राज्य, सरकार, शासन, धर्म, कर्तव्य आदि विषयों पर दुआनमू सी के पूछे प्रश्न और कन्फ्यूशियस के उत्तरों की आज भी चीनी समाज में खूब चर्चा होती है।
संकलन : हरिप्रसाद राय