Indira Ekadashi व्रत, सुनने मात्र से मिलता है पूरा फल

Update: 2024-09-28 11:00 GMT
Indira Ekadashi ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन एकादशी व्रत को खास बताया गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है इस दिन पूजा पाठ और व्रत आदि करना लाभकारी माना जाता है पंचांग के अनुसार आश्विन माह में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जा रहा है जो कि आज यानी 28 सितंबर दिन शनिवार को मनाई जा रही हैं इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में पड़ने के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। इस दिन पूजा पाठ करना लाभकारी होता है लेकिन इसी के साथ ही इंदिरा एकादशी व्रत की कथा जरूर सुननी या पढ़नी चाहिए माना जाता है बिना व्रत कथा को कोई व्रत पूर्ण नहीं होता है और ना ही इसका कोई फल मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं इंदिरा एकादशी की कथा।
   इंदिरा एकादशी की कथा—
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में इंद्रसेन नाम का एक राजा था, जो महिष्मती नगरी में राज्य करता था। उसे सभी भौतिक सुख प्राप्त थे। एक दिन नारद मुनि, राजा इंद्रसेन की सभा में उनके मृत पिता का संदेश लेकर पहुंचे। नारद जी ने राजा इंद्रसेन को बताया कि कुछ दिन पहले उनकी भेंट यमलोग में राजा के पिता से हुई। राजा के पिता ने नारद जी को यह कहा कि उनके जीवन काल में एकादशी का व्रत भंग हो गया था, जिस वजह से उन्हें अभी तक मुक्ति नहीं मिल पाई है और वह अभी भी यमलोक में भटक रहे हैं।
 यह संदेश सुनकर राजा बहुत ही दुखी हो गए और उन्होंने नारद जी से अपने पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय पूछा? जिसका हल निकालते हुए नारद जी ने बताया कि अगर वह अश्विन माह में पड़ने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत रखते हैं, तो इससे उनके पिता को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होगा।
 इसके बाद राजा ने इंदिरा एकादशी व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की। साथ ही राजा ने पितरों का श्राद्ध किया, ब्राह्मण भोज और उनके नाम से क्षमता अनुसार दान-पुण्य भी किया, जिसके परिणामस्वरूप राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इतना ही नहीं राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई। यही वजह है कि आज भी लोग इस व्रत का पालन भाव के साथ करते हैं।
 
Tags:    

Similar News

-->