माघ पूर्णिमा का व्रत रख रहे हैं तो पूजा के दौरान ये कथा जरूर पढ़ें

पूर्णिमा के व्रत को शास्त्रों में बहुत पुण्यदायी माना गया है. 16 फरवरी को माघ मास की पूर्णिमा तिथि है. अगर आप भी ये व्रत रखने जा रहे हैं तो यहां जानिए व्रत विधि और व्रत कथा के बारे में.

Update: 2022-02-15 06:23 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में पूर्णिमा (Purnima) तिथि को देवताओं की विशेष तिथि कहा गया है. वहीं माघ के महीने की पूर्णिमा और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. माना जाता है कि इस पूरे माघ मास में देवी देवता मनुष्य रूप में धरती पर मौजूद रहते हैं और गंगा स्नान, दान, पुण्य आदि करते हैं. पूर्णिमा के दिन स्वयं जगत के पालनहार भगवान विष्णु गंगा नदी में विद्यमान होते हैं. ऐसे में माघ पूर्णिमा (Magh Purnima) के दिन गंगा स्नान का मोक्षदायी बताया गया है. इस दिन देवी और देवता भी धरती पर स्नान और दान करके अपने लोक में लौट जाते हैं. पूर्णिमा के व्रत को शास्त्रों में श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. पूर्णिमा का व्रत रखने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और अनेक पाप नष्ट होते हैं. इस बार माघ मास की पूर्णिमा तिथि 16 फरवरी को बुधवार के दिन पड़ेगी. अगर आप भी इस दिन व्रत रखना चाहते हैं, यहां जानिए व्रत विधि और कथा (Magh Purnima Vrat Method and Katha).

माघ पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि
बुधवार को पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ़-सफाई करें. इसके बाद गंगा स्नान करें या पानी में थोड़ा गंगा जल डालकर स्नान कर लें. इसके बाद भगवान के सामने पूर्णिमा का व्रत रखने का संकल्प लें. भगवान विष्णु की माता लक्ष्मी के साथ वाली तस्वीर रखें और विधि विधान से पूजन करें. पूजा के दौरान प्रभु को पुष्प, फल, मिठाई, पंचामृत और नैवेद्य अर्पित करें. इसके बाद माघ पूर्णिमा की व्रत कथा पढ़ें या सुनें. पूजन के बाद सूर्य के सन्मुख खड़े होकर जल में तिल डालकर उसका तर्पण करें. दिन भर व्रत रखकर भगवान का मनन करें. रात में चंद्र दर्शन करके चंद्रमा को अर्घ्य दें. इसके बाद अपना व्रत खोलें. पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ना भी बेहद पुण्यदायी माना जाता है. मान्यता है कि इससे सौ यज्ञों के समतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है.
माघ पूर्णिमा व्रत कथा
कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था. वो अपना जीवन निर्वाह भिक्षा लेकर करता था. ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी. एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन लोगों ने उसे बांझ कहकर ताने मारे और भिक्षा देने से इनकार कर दिया. इससे वो बहुत दुखी हुई. तब किसी ने उससे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा.
ब्राह्मण दंपत्ति ने सभी नियमों का पालन करके मां काली का 16 दिनों तक पूजन किया. 16वें दिन माता काली प्रसन्न हुईं और प्रकट होकर ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया. साथ ही कहा कि तुम पूर्णिमा को एक दीपक जलाओ और हर पूर्णिमा पर ये दीपक बढ़ाती जाना. जब तक ये दीपक कम से कम 32 की संख्या में न हो जाएं. साथ ही दोनों पति पत्नी मिलकर पूर्णिमा का व्रत भी रखना.
ब्राह्मण दंपति ने माता के कहे अनुसार पूर्णिमा को दीपक जलाना शुरू कर दिया और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखने लगे. इसी बीच ब्राह्मणी गर्भवती भी हो गई और कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम देवदास रखा. लेकिन देवदास अल्पायु था. देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया.
काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया. कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया, लेकिन ब्राह्मण दंपति ने उस दिन अपने पुत्र के लिए पूर्णिमा का व्रत रखा था, इस कारण काल चाहकर भी उसका कुछ बिगाड़ न सका और उसे जीवनदान मिल गया. इस ​तरह पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.


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