नवरात्रि साल में 4 बार आते हैं लेकिन धूमधाम से चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि मनाए जाते हैं. दो बार गुप्त नवरात्रे आते हैं. इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से हो रही है और 24 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा माता के 9 रूपों की पूजा की जाती है. इस दौरान माता के भक्त व्रत रखते हैं सुबह-शाम उनकी पूजा करते हैं. दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati Path) का पाठ करने का भी इस दौरान बहुत महत्त्व है. दुर्गा माता से जुड़ा नवरात्रि का इतिहास अब हम आपको बता रहे हैं. तो आइए जानते हैं आखिर नवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार की बात है महिषासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था. इस राक्षस को अग्नि देव से वरदान मिला था कि वह मर्दाना नाम वाले हथियारों से नहीं मारा जाएगा, जिसके बाद उसने गंभीर विनाश और आतंक पैदा किया. राक्षस महिषासुर के आतंक से परेशान देवी-देवताओं ने एक दिन भगवान शिव से प्रार्थना की कि वो उनकी मदद करें. भगवान शिव ने सभी देवताओं को सलाह दी कि देवी शक्ति का आह्वान करें, देवताओं की प्रार्थना से, भगवान शिव के हृदय और सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और देवी आद्या शक्ति का निर्माण हुआ जिन्हें माता दुर्गा कहा गया. देवताओं ने उसे आभूषण, हथियार और वाहन के रूप में एक शेर दिया.
माता दुर्गा ने संकल्प लिया और वो महिषासुर से युद्ध करने चली गयीं. नौ दिनों तक दिन-रात तक दुष्ट महिषासुर से माता ने युद्ध किया और अंत में, दसवें दिन महिषासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया. इसलिए नौ रातों को नवरात्रि के रूप में जाना जाता है, जबकि दसवें दिन को विजयादशमी कहा जाता है, दसवां दिन बुराई पर अच्छाई की जीत लाता है.
नवरात्रि की पौराणिक कथा
नवरात्रि की ये पौराणिक कथा भगवान शिव और माता उमा पार्वती से जुड़ीस है. एक बार की बात है सती (जिन्हें उमा के नाम से भी जाना जाता है) ने अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह किया था. उमा के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने बदला लेने के लिए, एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया और इसमें अपने नए दामाद (भगवान शिव) को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. ये बात जब उमा को पता चली तो उसे लगा कि ये उसके पति भगवान शिव का अपमान है. भगवान शिव के मना करने के बावजूद सती ने यज्ञ में शामिल होने का फैसला किया. राजा ने अपनी बेटी की उपस्थिति को नजरअंदाज कर दिया और सार्वजनिक रूप से भगवान शिव को अपशब्द कहने लगे. अपने पिता का अपमान न सह पाने के कारण सती ने यज्ञ अग्नि में कूदकर आत्महत्या कर ली. हालांकि, उनका पुनर्जन्म हुआ और उन्होंने फिर से भगवान शिव को अपना वर बनाया और शांति बहाल हुई. ऐसा माना जाता है कि तब से उमा हर साल अपने चार बच्चों गणेश, कार्तिक, सरस्वती और लक्ष्मी और अपनी दो सबसे अच्छी सहेलियों या जया और बिजया नामक 'सखियों' के साथ नवरात्रि के दौरान अपने माता-पिता के घर आती हैं.