भगवान कृष्ण और राधारानी की नगरी में कैसे मनाई जाती है होली.....40 दिनों तक चलने वाले रंगोत्सव में क्या होता है खास
जब बरसाना से एक सखी सुबह राधारानी की ओर से रंग और मिठाई लेकर नंदगांव के हुरियारों को होली का आमंत्रण देने जाती है तो शाम में वहां से एक पंडा कृष्ण के प्रतिनिधि के रूप में होली का न्यौता देने बरसाना पहुंचता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हमारा देश भारत सांस्कृतिक तौर पर बहुत ही समृद्ध है. यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को और समृद्ध बनाते हैं, यहां के त्योहार. इस महीने होली (Holi) का त्योहार है. देश भर के विभिन्न हिस्सों में यह कई-कई दिनों तक मनाया जाता है. भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा (Holi in Mathura) में तो यह रंगोत्सव 40 दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत बसंत के प्रवेश करते ही हो जाती है. इन दिनों उत्तर प्रदेश के मथुरा में होली का उत्साह साफ नजर आ रहा है. बसंत पंचमी (Basant Panchami) पर मंदिरों में और होलिका दहन स्थलों पर होली का ढांडा गाड़े जाने के बाद से ही भगवान कृष्ण की नगरी में 40 दिनों तक चलने वाले रंगोत्सव की धूम शुरू हो चुकी है.
10 मार्च को जहां एक ओर चुनाव परिणाम आने पर जीतने वाले नेताओं और पार्टियों की ओर से गुलाल उड़ाए जाएंगे, वहीं दूसरी ओर होली का उत्साह भी नजर आएगा. बरसाना के लाड़िली जी मंदिर में 'लड्डू होली' खेले जाने के साथ ही होली का आनंद चरम पर पहुंचता जाएगा.
लट्ठ की मार खाकर धन्य हो जाते हैं लोग
श्रीजी मंदिर के सेवायत किशोरी गोस्वामी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा ''कान्हा की नगरी में रंग खेलने का आनंद उन लोगों से ज्यादा कौन जानता होगा जो 'लट्ठ की मार' खाकर भी खुद को धन्य मानते हैं. इस बार फागुन शुक्ल नवमी व दशमी को क्रमश: बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाएगी.''
उन्होंने बताया कि इसके बाद रंगभरनी एकादशी पर 12 मार्च को मथुरा में ठाकुर द्वारिकाधीश एवं वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में श्रद्धालु अपने आराध्य के साथ होली खेलेंगे. इस दिन मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में लीलामंच पर ब्रज की कमोबेश सभी प्रकार की होलियों का मंचन होगा.
लड्डू होली में लड्डुओं की बरसात
कहा जाता है कि जब बरसाना से एक सखी सुबह राधारानी की ओर से रंग और मिठाई लेकर नंदगांव के हुरियारों (होली खेलने वालों) को होली का आमंत्रण देने जाती है तो सायंकाल वहां से एक पंडा कृष्ण के प्रतिनिधि के रूप में होली का न्यौता देने बरसाना पहुंचता है. बरसाना के गोस्वामी उसका आदर-सत्कार करते हैं.
सेवायत गोस्वामी ने बताया कि आवभगत के लिए पण्डा को लड्डू खिलाने की होड़ मच जाती है और उस पर एक प्रकार से लड्डुओं की बरसात होती है. इन्हीं लड्डुओं को प्रसाद के रूप में दिया जाता है और इसे 'लड्डू होली' या 'लड्डू लीला' कहा जाता है. फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन बरसाना में लट्ठमार होली होती है.
दिल्ली से मंगाए गए हैं 10 क्विंटल टेसू के फूल
सेवायत किशोरी गोस्वामी बताते हैं कि दिल्ली से टेसू के 10 क्विंटल फूल मंगाए गए हैं. उन्होंने बताया कि टेसू के फूलों से तैयार रंग को लाड़ली जी मंदिर में ऊपर की मंजिलों से श्रद्धालुओं और नंदगांव के हुरियारों पर डाला जाता है. इसके बाद 14 मार्च को श्रद्धालु मथुरा में ठाकुर द्वारिकाधीश और वृंदावन में ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में रंगों की होली खेलेंगे.
गोकुल की छड़ीमार होली
16 मार्च को गोकुल की छड़ीमार होली होगी. गोपियां बालकृष्ण के साथ होली खेलने के लिए, छोटी-पतली छड़ियां ले कर निकलेंगी. मान्यता है कि यदि बड़ी लाठी से होली खेली जाएगी, तो कृष्ण को चोट पहुंच सकती है इसलिए यहां छड़ियों से ही होली खेली जाती है.
फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के अवसर पर कोसीकलां के निकट स्थित फालैन गांव में एक पण्डा होली की धधकती हुई ज्वाला में से गुजरता है. अगले दिन ब्रजवासी होली खेलते हैं. इसी के साथ रंगों से खेली जाने वाली होली की परम्परा का एक पक्ष यहां सम्पूर्ण हो जाता है.