रमा एकादशी पर सुनें ये व्रत कथा, जानिए इससे होने वाले लाभ
रमा एकादशी हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को होती है। इस वर्ष रमा एकादशी 11 नवंबर दिन बुधवार को है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| रमा एकादशी हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को होती है। इस वर्ष रमा एकादशी 11 नवंबर दिन बुधवार को है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। माता लक्ष्मी का नाम रमा है, इसलिए यह एकादशी उनके ही नाम पर है। रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा करने से सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है। आज के दिन जो लोग रमा एकादशी का व्रत रखते हैं, उनको रमा एकादशी की कथा सुननी चाहिए। इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है।
रमा एकादशी व्रत कथा
एक समय मुचुकुंद नाम का राजा सत्यवादी तथा विष्णुभक्त था। उसने अपनी बेटी चंद्रभागा का विवाह उसने राजा चंद्रसेन के पुत्र सोभन से किया था। मुचुकुंद एकादशी का व्रत विधि विधान से करता था और प्रजा भी व्रत के नियमों का पालन करती थी। कार्तिक मास में सोभन एक बार ससुराल आया। रमा एकादशी का व्रत था। राजा ने घोषणा कर दी कि सभी लोग रमा एकादशी का व्रत नियम पूर्वक करें। चंद्रभागा को लगा कि उसके पति को इससे पीड़ा होगी क्योंकि वह कमजोर हृदय का है।
जब सोभन ने राजा का आदेश सुना तो पत्नी के पास आया और इस व्रत से बचने का उपाय पूछा। उसने कहा कि यह व्रत करने से वह मर जाएगा। इस पर चंद्रभागा ने कहा कि इस राज्य में रमा एकादशी के दिन कोई भोजन नहीं करता है। यदि आप व्रत नहीं कर सकते हैं तो दूसरी जगह चले जाएं। इस पर सोभन ने कहा कि वह मर जाएगा लेकिन दूसरी जगह नहीं जाएगा, वह व्रत करेगा। उसने रमा एकादशी व्रत किया, लेकिन भूख से उसकर बूरा हाल था। रात्रि के समय जागरण था, वह रात्रि सोभन के लिए असहनीय थी। अगले दिन सूर्योदय से पूर्व ही भूखे सोभन की मौत हो गए।
इस पर राजा ने उसके शव को जल प्रवाह करा दिया तथा बेटी को सती न होने का आदेश दिया। उसने बेटी से भगवान विष्णु पर आस्था रखने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर बेटी ने व्रत को पूरा किया। उधर रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से सोभन जीवित हो गया और उसे विष्णु कृपा से मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक उत्तम नगर मिला। राजा सोभन के राज्य में स्वर्ण, मणियों, आभूषण की कोई कमी न थी। एक दिन राजा मुचुकुंद के नगर का एक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए सोभन के नगर में पहुंचा।
उसने राजा सोभन से मुलाकात की। राजा ने अपनी पत्नी चंद्रभागा तथा ससुर मुचुकुंद के बारे में पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वे सभी कुशल हैं। आप बताएं, रमा एकादशी का व्रत करने के कारण आपकी मृत्यु हो गई थी। अपने बारे में बताएं। फिर आपको इतना सुंदर नगर कैसे प्राप्त हुआ? तब सोभन ने कहा कि यह सब रमा एकादशी व्रत का फल है, लेकिन यह अस्थिर है क्योंकि वह व्रत विवशता में किया था। जिस कारण अस्थिर नगर मिला, लेकिन चंद्रभागा इसे स्थिर कर सकती है।
उस ब्राह्मण ने सारी बातें चंद्रभागा से कही। तब चंद्रभागा ने कहा कि यह स्वप्न तो नहीं है। ब्राह्मण ने कहा कि नहीं, वह प्रत्यक्ष तौर पर देखकर आया है। उसने चंद्रभागा से कहा कि तुम कुछ ऐसा उपाय करो, जिससे वह नगर स्थिर हो जाए। तब चंद्रभागा ने उस देव नगर में जाने को कहा। उसने कहा कि वह अपने पति को देखेगी तथा अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर कर देगी। तब ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत पर वामदेव के पास ले गया। वामदेव ने उसकी कथा सुनकर उसे मंत्रों से अभिषेक किया। फिर चंद्रभागा ने व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण किया और सोभन के पास गई। सोभन ने उसे सिंहासन पर अपने पास बैठाया।
फिर चंद्रभागा ने पति को अपने पुण्य के बारे में सुनाया। उसने कहा कि वह अपने मायके में 8 वर्ष की आयु से ही नियम से एकादशी व्रत कर रही है। उस व्रत के प्रभाव से यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा यह प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। दिव्य देह धारण किए चंद्रभागा अपने पति सोभन के साथ उस नगर में सुख पूर्वक रहने लगी।
रमा एकादशी व्रत कथा का महत्व
भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो लोग रमा एकादशी का माहात्म्य सुनते हैं, वे अंत में विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं।