ब्राह्मण का रूप रखकर हनुमान जी पहुंचे श्री राम-लक्ष्मण के सामने, जानें पूरी कहानी
श्री रघुनाथ जी जंगलों में चलते हुए ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंच गए. पर्वत पर मंत्रियों के साथ सुग्रीव रहते थे.
श्री रघुनाथ जी जंगलों में चलते हुए ऋष्यमूक पर्वत के निकट पहुंच गए. पर्वत पर मंत्रियों के साथ सुग्रीव रहते थे. श्रीराम चंद्र जी और लक्ष्मण जी को आते हुए देख कर सुग्रीव भयभीत हो गए. उन्होंने तुरंत ही हनुमान जी बुलाया और कहा, ये दोनों पुरुष बल और रूप के निधान दिख रहे हैं. तुम ब्रह्मचारी का रूप धारण कर वहां जाओं और उनसे बातचीत कर उनके मन की बात जानकर मुझे इशारे में बताओ. सुग्रीव ने कहा यदि ये दोनों बाली के भेजे हुए मानव हुए तो मैं इस पर्वत को छोड़कर तुरंत ही यहां से भाग जाऊंगा.
ब्राह्मण का रूप रखकर हनुमान जी पहुंचे श्री राम-लक्ष्मण के सामने
सुग्रीव की आज्ञा मानकर हनुमान जी ने तुरंत ही ब्राह्मण का रूप रखा और पहुंच गए वहां, जहां पर श्रीराम और लक्ष्मण चले आ रहे थे. उनके सामने मस्तक नवाते हुए उन्होंने पूछा, हे वीर सांवले और गोरे शरीर वाले आप कौन हैं जो क्षत्रिय के रूप में वन में घूम रहे हैं. उन्होंने विनम्रता पूर्वक पूछा कि इस कठोर भूमि पर कोमल चरणों से चलने वाले आप किस उद्देश्य से यहां से निकल रहे हैं. उन्होंने दोनों की प्रशंसा करते हुए कहा कि मन को हरण करने वाले आपके सुंदर कोमल अंग हैं और फिर भी आप पीड़ा देने वाली इतनी कड़ी धूप और वायु को सहन कर रहे हैं. क्या आप ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों देवताओं में से कोई हैं या फिर आप दोनों नर और नारायण हैं अथवा आप जगत के मूल कारण और सम्पूर्ण लोकों के स्वामी स्वयं भगवान हैं, जिन्होंने लोगों को भवसागर से पार उतारने तथा पृथ्वी का भार कम करने के लिए मनुष्य रूप में अवतार लिया है.
श्रीराम ने विनम्रतापूर्वक दिया अपना पूरा परिचय
श्रीराम चंद्र जी ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया कि हम कोसलराज दशरथ जी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन में आए हैं. हमारे नाम राम और लक्ष्मण हैं. हम दोनों भाई हैं और हमारे साथ हमारी स्त्री भी थी, किंतु इस जंगल में किसी राक्षस ने मेरी जानकी को हर लिया जिन्हें खोजते हुए हम भटक रहे हैं.