‘दयानंद सरस्वती’ से प्रेरित महान क्रांतिकारी ‘रामप्रसाद बिस्मिल’

हम अभी से क्यूं बताएं, क्या हमारे दिल में है।’’

Update: 2023-06-11 18:47 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | Ram Prasad Bismil Birth Anniversary: ओज और जोश से भरी इन पंक्तियों ने मातृभूमि के दीवाने हजारों नौजवानों को देश की स्वतंत्रता के लिए न्यौछावर होने की प्रेरणा दी। महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी अपना सर्वस्व राष्ट्र के लिए न्यौछावर कर दिया और सदा के लिए भारतवासियों को ऋणी बना गए। रामप्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे।
बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था, जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वह राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कविताएं लिखते थे। रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में बेहद साधारण कृषक परिवार में हुआ और 30 वर्ष की आयु में ही 1927 में वह शहीद हुए। उनके पिता का नाम मुरलीधर और मां का नाम मूलमती था।
बालक की जन्मकुंडली व दोनों हाथों की दसों उंगलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी, ‘‘यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि संभावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पाएगी।’’
रामप्रसाद बिस्मिल की प्रारंभिक शिक्षा पिता के सानिध्य में घर पर हुई। बाद में उर्दू पढ़ने के लिए वह एक मौलवी साहब के पास गए। अंग्रेजी में उन्होंने 8वीं कक्षा उत्तीर्ण की। जब वह 9वीं कक्षा में थे, तब आर्य समाज के संपर्क में आए। स्वामी दयानंद सरस्वती की रचना ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़कर उनमें काफी परिवर्तन आया। उन्हें वैदिक धर्म को जानने का अवसर प्राप्त हुआ, उनके जीवन में नए विचारों और विश्वासों का जन्म हुआ। उन्हें सत्य, संयम, ब्रह्मचर्य का महत्व आदि समझ में आया। रामप्रसाद बिस्मिल ने अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का प्रण किया, जिसके लिए अपनी पूरी जीवनचर्या ही बदल डाली।
रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन पर सबसे अधिक उनकी मां का प्रभाव पड़ा। उनकी माता मूलमती यूं तो अशिक्षित थीं, पर विवाहोपरांत उन्होंने प्रयत्न से हिंदी पढ़ना सीख लिया। वह एक अत्यंत धार्मिक, सदाचारी, कर्त्तव्यपरायणऔर देशभक्त महिला थीं।
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