गोगाजी – राजस्थान के लोक देवता (5)

वहां-वहाँ पर गोगाजी का स्मरण हो ही जाता है।

Update: 2023-04-29 17:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | गोगाजी। गोगाजी चौहान, राजस्थान के बाहर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पँजाब, हिमाचल प्रदेश आदि में बहुत लोकप्रिय देवता हैं। जहां-जहां गोरखनाथ अथवा नाथ पंथ का चलन रहा वहां-वहाँ पर गोगाजी का स्मरण हो ही जाता है।
गोगा को गुग्गा कहकर भी पुकारा जाता है । इनका दूसरा लोकप्रिय सम्बोंधन जाहिरपीर भी है। जाहिरपीर के पराक्रमों के लम्बे गीत बंगाल तक फैले हुए हैं। जाहिरपीर एक वीर योद्धा और विदेशी आक्रमणों को रोकने वाला प्रबल रक्षक के रूप में लोक गाथाओं और गीतों में प्रकट होता है ।
गोगा चौहान ने ददरेवा (चुरू) को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया था । यह ददरेवा वर्तमान में जिला गंगानगर की नौहर तहसील में आया हुआ है । ददरेवा के स्थान को ‘शीस मढ़ी’ भी कहते हैं । इससे द किलोमीटर की दूरी पर ‘गोगा मेड़ी’ स्थान है जहां पर गोगाजी की समाधि बनी है ।
गोगा का राजस्थान और आसपास के क्षेत्र में जो रूप हैं वह लोक साहित्य में स्पष्ट है । गोगाजी के विवाह को लेकर कई करुण घटनायें घटीं । वे आक्रमणकारियों का सामना भी करते हैं । वे साँपों के देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं। गोगाजी की मान्यता लोक समुदाय में इष्ट को प्राप्ति के अलावा अनिष्ट के निवारण हेतु भी है ।
गोगाजी – राजस्थान के लोक देवता (5)
इनकी मान्यता में भय मिश्रित भावना रहती हैं । एक राजस्थानी पडूत्तर ( प्रश्न के रूप में पहेली) है ‘गोगो बड़ी या गुसाँई ?’ अर्थात् गोगा बड़ा है या गुसांई । तो उत्तर देने वाला कहता है कि जो भी बड़ा हो परड़ों (सांपों) से बैर कौन बाँधे ? अर्थात सर्प से रक्षा करने वाला ही बड़ा माना जाना चाहिए । संसार की सभी आदिम सभ्यताओं में वीर पुरुषों का सम्बन्ध सापो के साथ जुड़ा मिलता है ।
गोगाजी – राजस्थान के लोक देवता (5)
गोगाजी – राजस्थान के लोक देवता (5)
गोगाजी संबंधी सारे लोक साहित्य में उनका सर्पों से सम्बन्ध स्थान-स्थान पर जुड़ा हुआ है । भारत गरम देश हैं और सर्पों से बचने हेतु एक देवता की आराधना चाहिए और वह गाजी के प्रति हुई । राजस्थान की कहावत है कि गांव-गांव गोगा ने गाँव-गाँव खेजड़ी ( शमो वृक्ष) ।’
राजस्थान में हर जगह खेजड़ी का पेड़ तो उगा मिल हो जाता हैं और इन पेड़ों के नीचे पत्थर पर सपे की मूर्ति खोदकर, गोगाजी का थान (स्थान) बना लेते हैं। यहां पर दीपक भी जलाते हैं। खेजड़ो पर ध्वजा भी रोप दी जाती है । ऐसे गोगाजी के पूजा स्थल (थान ) सभी गांवों में मिलते हैं।
गोगाजी का इतिहास बहुत उलझा हुआ है। कई विद्वानों ने भिन्न-भिन्न समय माना है सम्वत 770 से लगाकर चौदहवीं शती तक के मध्य तक में गोगाजी का काल रहा है। जो लोग गोगा का सम्बन्ध गोरखनाथ से जोड़ते हैं वे इतिहास के काल में ताल मेल नहीं बिठा सके हैं ।
इसका कारण यह है कि गोरखनाथ का समय भी अनिश्चित है । साथ ही गोरखनाथ और गोगा का संबंध बताने वाला मौखिक साहित्य भी कल्पित जान पड़ता है । इस दशा में राजस्थानी बात और ख्यात को आधार मानकर, गोगाजी के जीवन पर कुछ लिखना यही हितकर होगा और यही गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं ।
यह तो सभी मानते हैं कि गोगाजी चौहान राजवंश के थे जो भारत का प्रतापी शासक वंश रहा है । राजस्थान के कायमखानी मुसलमान पहले चौहान थे । यह मुसलमान भी गोगाजी को अपना पूर्वज मानते हैं और गोगाजी को पीर मानकर पूजते हैं।
राजस्थानो लोक साहित्य के अनुसार गोगाजी का विवाह मारवाड़ नरेश राव आसथान के पौत्र बूढ़ा की पुत्री केलमदे के साथ हुआ था । बूढ़ा के सगे छोटे भाई पाबूजी राठौड़ राजस्थान के लोक देवता) थे । गोगाजी और पाबूजी दोनों करामाती पुरुष थे । इन दोनों के आपस में चमत्कार दिखाने की होड़ भी लगी थी ऐसा लोक कहानियों से जाना जाता है ।
यह ‘गोगा राखड़ी’ लाल और श्वेत डोरे से गूंथी होती हैं। राखी बांधकर कहते हैं, ‘हाली बालदी गोगा रखवाली’ अर्थात् हाली और बैल का (साँपों के भय से ) रखवाला गोगाजी रहेंगे ।
गोगाजी – राजस्थान के लोक देवता (5)
गोगाजी – राजस्थान के लोक देवता (5)
गोगाजी का पूजन भादों शुक्ल नौमी को प्रतिवर्ष होता है । इस पर्व को ‘गोगानम’ कहते हैं परन्तु जाट जाति वाले किसान गोगानम का पर्व कृष्ण पक्ष में मनाते हैं। गोगाजी का मेला इनको समाधि (गोगामेड़ी, तहसील नोहर, जिला गंगानगर, राजस्थान प्रान्त में ) पर भाद्रपद मास के दोनों पक्षों पर लगता है । उस अवसर पर पशुमेला भी लगा दिया जाता हैं ।
गोगामेड़ी स्थान के चारों ओर दुर्ग के समान दिवारें बनी हैं। इन दिवारों पर मस्जिद को सी मिनारें भी खड़ी हैं । बाहर सारी इमारत मकबरा दिखती है। अन्दर मुख्य मन्दिर के द्वार पर मुस्लिम कलमा ‘बिस्मिल्ला’ ग्रंकित पत्थर लगा है । यहाँ पर बनी समाधि श्वेत संगमरमर की है । पास की देवली आसमानी घोड़े पर सवार, भाला लिए, सर्प विभूषित मुकुट धारण किए गोगाजी की मूर्ति खड़ी है ।
गोगाजी का जीवन एक वीर की कहानी है जो तलवार की धार से लिखी है। उन्होंने क्षात्र धर्म को निभाया । मुस्लिम प्राक्रमणों से देश की रक्षा की, दुष्टों कों ताड़ना दी और माता की सेवा में सदैव रहे । गोगाजी कृषकों को अभय दान देने वाले हैं । इस कल्याणकारी रूप के कारण ही गोगाजी जनप्रिय हुवे । हिन्दुओं ने गोगाजी को देवता माना तो मुसलमानों ने पीर राजस्थान के लाखों किसानों और भक्तों के गोगाजी पूज्य लोक देवता हैं ।
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