गायत्री मंत्र के होते हैं ये अर्थ, जानिए क्या है इसकी शक्ति का राज
हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र को महामंत्र भी कहा जाता है। इसका महत्व सर्वोपरि माना गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र को महामंत्र भी कहा जाता है। इसका महत्व सर्वोपरि माना गया है। मान्यता है कि दुनिया की पहली पुस्तक ऋग्वेद की शुरुआत इसी मंत्र से होती है। ब्रह्मा जी ने चार वेदों की रचना से पहले इस मंत्र की रचना की थी। क्या आप जानते हैं कि गायत्री मंत्र के तीन अर्थ होते हैं? आइए जानते हैं इस मंत्र के मतलब।
पढ़ें गायत्री मंत्र:
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
पहला अर्थ: हम पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का ध्यान करते हैं। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की तरफ चलने के लिए परमात्मा का तेज प्रेरित करे।
दूसरा अर्थ: उस दुःखनाशक, तेजस्वी, पापनाशक, प्राणस्वरूप, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में परमात्मा प्रेरित करे।
तीसरा अर्थ: ॐ: सर्वरक्षक परमात्मा, भू: प्राणों से प्यारा, भुव: दुख विनाशक, स्व: सुखस्वरूप है, तत्: उस, सवितु: उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक, वरेण्य: वरने योग्य, भर्गो: शुद्ध विज्ञान स्वरूप का, देवस्य: देव के, धीमहि: हम ध्यान करें, धियो: बुद्धि को, यो: जो, न: हमारी, प्रचोदयात्: शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
क्या है गायत्री मंत्र की शक्ति का राज:
मान्यता है कि अगर इस मंत्र का लगातार जपा जाए तो इससे मस्तिष्क का तंत्र बदल जाता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियां जपकर्ता से दूर चली जाती हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र ने इस मंत्र के बल पर ही एक नई सृष्टि का निर्माण किया था। इसी से पता चलता है कि यह मंत्र कितना शक्तिशाली है। ऐसा कहा जाता है कि इसके हर अक्षर के उच्चारण से एक देवता का आह्वान होता है।
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