Garuda Purana : मृत्यु के बाद 10 दिनों तक जरूरी है पिंडदान, जानिए इसका महत्व

गरुड़ पुराण में जीवन और मृत्यु से जुड़े तमाम रहस्यों को उजागर किया गया है. यहां जानिए कि मृत्यु के बाद 10 दिनों तक पिंडदान करने का क्या महत्व होता है, मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है !

Update: 2021-10-05 04:19 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जीवन में क्या-क्या घटित होता है और उन परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाए, ये सब तो हम खुद के जीवन से और अपने आसपास के लोगों के जीवन को देखकर समझ सकते हैं. लेकिन मृत्यु के बाद क्या होता है, क्या वाकई स्वर्ग और नर्क जैसे कोई लोक होते हैं, इनके बारे में जिंदा रहते हुए कोई नहीं जान सकता.

लेकिन अगर आप गरुड़ पुराण पढ़ेंगे तो आपको इन बातों के जवाब भी मिल जाएंगे. गरुड़ पुराण एक ऐसा महापुराण है जिसमें व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाने के तरीके से लेकर मृत्यु के बाद जीवात्मा की तमाम स्थितियों का वर्णन भी विस्तार पूर्वक किया गया है. सनातन धर्म में किसी की मृत्यु के बाद 10 दिनों तक पिंडदान करने का रिवाज है, ऐसा क्यों किया जाता है, जानिए इस बारे में क्या कहता है गरुड़ पुराण.
अंगूठे के आकार के बराबर की जीवात्मा
गरुड़ पुराण के मुताबिक मृत्यु के समय मनुष्य के प्राण लेने के लिए यमराज के दूत आते हैं. अंतिम समय में जो व्यक्ति जितना ज्यादा मोह-माया में उलझा रहता है, उसे प्राण त्यागने में उतना ही कष्ट होता है. जो व्यक्ति मृत्यु के सत्य का आभास कर लेता है, उसे प्राण त्यागने में ज्यादा कष्ट नहीं होता. गरुड़ पुराण के अनुसार मरने के बाद व्यक्ति के शरीर से अंगूठे के बराबर के आकार की जीवात्मा निकलती है, जिसे यमदूत पकड़कर यमलोक ले जाते हैं.
यमलोक से लौटकर धरती पर वापस आती है आत्मा
यमलोक 99 हजार योजन दूर है. वहां यमदूत जीवात्मा को उसके कर्मों का लेखा जोखा दिखाते हैं, इसके बाद आत्मा को फिर से उसके घर में भेज दिया जाता है. घर आकर जीवात्मा फिर से शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करती है, लेकिन यमराज के दूत उसे मुक्त नहीं होने देते. ऐसे में आत्मा भूख-प्यास के कारण तड़पती है. मृत्यु के समय उसके पुत्र या परिवारीजन जो पिंड दान करते हैं, उससे भी उसकी तृप्ति नहीं होती.
10 दिन के पिंडदान से मिलती है शक्ति
इस दौरान मृतक के परिजन 10 दिनों तक उसके निमित्त जो पिंडदान करते हैं, उससे उस आत्मा को चलने की शक्ति प्राप्त होती है. 13वें दिन उसी ताकत से वो आत्मा फिर से यमलोक का सफर तय करती है. यदि ये पिंडदान न किया जाए तो जीवात्मा को ताकत नहीं मिलती और यमराज के दूत उसे घसीटते हुए यमलोक लेकर जाते हैं. यमलोक पहुंचने के बाद यमराज जीवात्मा के कर्मों के अनुसार न्याय करते हैं और आत्मा को स्वर्ग, नर्क या पितृ लोक भेज देते हैं. वहां पर आत्मा को अपने कर्मों का भुगतान करना होता है. कर्मों के भुगतान के समय के बाद आत्मा फिर से नया शरीर धारण करके मृत्यु लोक में आती है. ये क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक उसे मुक्ति नहीं मिल जाती.


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