Garuda Purana : पूर्वजों का श्राद्ध तो संतुष्ट होंगे पितर, मिलेगा आशीर्वाद, इस तरह करेंगे

गरुड़ पुराण में पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के कुछ नियम बताए गए हैं. उन नियमों का पालन करने से पितृ प्रसन्न होते हैं

Update: 2021-07-14 08:22 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पितृ पक्ष शुरू होता है और अमावस्या ​तक रहता है. ये 15 दिन पूरी तरह से पितरों को समर्पित माने जाते हैं. मान्यता है कि इन दिनों में हमारे पितर पितृ लोक से धरती पर आते हैं और अपने परिजनों से अन्न और जल की अपेक्षा करते हैं. इसीलिए पितरों को श्राद्ध और तर्पण के जरिए अन्न और जल दिया जाता है. जिनके परिजन पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण नहीं करते, उनके पितर भूखे-प्यासे धरती से लौट जाते हैं. ऐसे में परिवार में पितृ दोष लगता है और तमाम तरह की परेशानियां सामने आती हैं. गरुड़ पुराण में श्राद्ध से जुड़े कई नियमों के बारे में विस्तार से बताया गया है.

गरुड़ पुराण के अनुसार आपके पूर्वज की जिस तिथि में मृत्यु हुई है, पितृ पक्ष की उन्हीं तिथियों में पितरों का श्राद्ध किया जाता है. सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा का स्थान और पितरों के स्थान को गोबर से लीपना चाहिए और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए. फिर पितरों के नाम पर ब्राह्मण से तर्पण वगैरह कराना चाहिए. उसके बाद दिन के 12 बजकर 24 मिनट तक पितर के नाम से ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. ये समय अच्छा माना जाता है.
श्राद्ध के दिन घर की जो भी महिला पितरों का भोजन बनाए, उसे शुद्धता का पूरा खयाल रखना चाहिए और भोजन को जूठा नहीं करना चाहिए. श्राद्ध का भोजन करने के लिए जिस श्रेष्ठ ब्राह्मण या कुल के सम्मानित व्यक्ति को बुलाया है, सबसे पहले उसके पैरों को धोना चाहिए. इस कार्य के समय पत्नी को पति के दाहिनी तरफ होना चाहिए. इसके बाद ही ब्राह्मण से पितरों की पूजा और तर्पण आदि करवाएं.
ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के नाम से भोजन पत्ते पर निकालना चाहिए. इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें. इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं. भोजन हमेशा पत्ते या थाली में ही दें. कभी डिस्पोजल में न दें.
​ब्राह्मण को भोजन हमेशा प्रेम पूर्वक कराएं. क्रोधित न हों और न ब्राह्मण को होने दें. भोजन करने के बाद ब्राह्मण को यथा सामार्थ्य दान व दक्षिणा देकर सम्मानपूर्वक ​पैर छूकर विदा करें. पितरों के निमित्त जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, पितर उससे संतुष्ट होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देकर जाते हैं. ऐसा परिवार हमेशा फलता फूलता है. घर में किसी चीज की कमी नहीं होती


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