गणगौर तीज आज, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

भारतीय सनातन सभ्यता में ऐसे अनेकों पर्व हैं,जो अखंड सौभाग्य और परिवार की मंगल कामना के भाव से जुड़े हैं। अखण्ड सुहाग का प्रतीक गणगौर के पूजन एवं व्रत का महिलाओं के लिए अपना एक अलग ही स्थान है।

Update: 2022-04-04 01:45 GMT

भारतीय सनातन सभ्यता में ऐसे अनेकों पर्व हैं,जो अखंड सौभाग्य और परिवार की मंगल कामना के भाव से जुड़े हैं। अखण्ड सुहाग का प्रतीक गणगौर के पूजन एवं व्रत का महिलाओं के लिए अपना एक अलग ही स्थान है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला यह त्योहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। इस बार गणगौर तीज का व्रत 4 अप्रैल,सोमवार को मनाया जाएगा।

गणगौर तीज शुभमुहूर्त-

तृतीया तिथि शुरू- 3 अप्रैल,रविवार दोपहर 12:38 बजे से

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 4 अप्रैल,सोमवार को रखा जाएगा।

पर्व का महत्व-

गणगौर पूजन मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा का ही दिन है। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है 'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। धर्मग्रंथों के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री देवी पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के पुण्य से भगवान शिव को पति रूप में पाया। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया था। मान्यता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा शुरू हुई। विवाह योग्य कन्याएं शिव जैसे भावी पति को पाने के लिए गणगौर पूजन करती हैं। वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु व मंगल कामना के लिए ईसर-गौर का पूजन करती हैं।

पूजाविधि-

इस दिन कन्याएं व स्त्रियां सुबह सज-धज कर बाग-बगीचों से ताजा जल लोटों में भरकर उसमें हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी से शिव स्वरूप ईसर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती हैं। गणगौर को सुंदर वस्त्र पहनाकर रोली,मोली,हल्दी,काजल,मेहंदी आदि सुहाग की चीजों से गीत गा-गाकर पूजन किया जाता है। दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली,मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं । थाली में जल,दूध-दही,हल्दी,कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं। अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है।


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