सुहाग की लंबी आयु के लिए गणपति से की जाती है करवा चौथ में प्रार्थना
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ का व्रत स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है. इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां पति के स्वास्थ्य, आयु एवं मंगल कामना के लिए व्रत करती हैं.
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ का व्रत स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है. इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां पति के स्वास्थ्य, आयु एवं मंगल कामना के लिए व्रत करती हैं. यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है. इस व्रत को रखने वाली स्त्रियों को प्रातः काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र तथा सुख सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए.
इन देवों को पूजा जाता है
इस व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश जी तथा चन्द्रमा का पूजन करने का विधान है. स्त्रियां चन्द्रोदय के बाद चन्द्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर ही जल व भोजन ग्रहण करती हैं. पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री और रुपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास जी के पांव छूकर फल, मेवा, 14 पूरी या मिठाई का बायना व सुहाग की सारी सामग्री देनी चाहिए. विवाह के प्रथम वर्ष लड़कियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं तथा 14 खांड के कलश, एक लोटा, फल, मिठाई, बायना सुहाग का सब सामान तथा साड़ी आदि सासूजी को भेंट कर देती हैं. इस वर्ष करवा चौथ 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा.
महाभारत में है करवा चौथ व्रत का महात्म्य
इस व्रत के महात्म्य पर महाभारत में एक कथा मिलती है, जिसको महिलाएं दीवार पर गोबर से लीप कर चावल से बनाती हैं तथा उसका पूजन करती हैं. आजकल करवा चौथ के कैलेंडर उपलब्ध हैं, उनको दीवार पर लगा कर पूजन किया जाता है. करवा चौथ व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन काल में शाक प्रस्थपुर के वेद धर्मा नाम के एक धर्म परायण ब्राह्मण रहते थे. उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरवती था. बड़ी होने पर का पुत्री का विवाह कर दिया गया. कार्तिक की चतुर्थी कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा. सात भाइयों की लाडली बहन को चन्द्रोदय से पहले भूख सताने लगी. उसका फूल सा चेहरा मुरझाने लगा तो भाईयों के लिए बहन की यह वेदना असहनीय थी. वे कुछ उपाय सोचने लगे. पहले तो उन्होंने बहन से चन्द्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा पर बहन न मानी.
पति की मौत के बाद खुला सच
तब भाईयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके, कहा देखो चंद्रोदय हो गया. उठो, अर्घ्य देकर भोजन करो. बहन उठी, चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया. भोजन करते ही उसका पति मर गया. वह रोने चिल्लाने लगी. देवयोग से इन्द्राणी देवदासियों के साथ वहां से जा रही थीं. रोने की आवाज सुन वहां गईं और रोने का कारण पूछा. ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया तो इन्द्राणी बोलीं, तुमने करवा चौथ व्रत में चन्द्रोदय से पूर्व ही अन्न जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है. अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथा विधि व्रत करो, करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चन्द्रमा का पूजन करो तथा चन्द्रोदय के बाद अर्घ्य देकर अन्न जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जी उठेंगे. ब्राह्मण कन्या ने 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसका पति पुनः जीवित हो गया.