क्षमावाणी पर्व पर सहनशील बनाती है क्षमा, जानें इसके पीछे का महत्व

जैन परंपरा में पर्युषण महापर्व के ठीक एक दिन बाद जो महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता है, वह है - क्षमा पर्व। इस दिन श्रावक और साधु दोनों ही वार्षिक प्रतिक्रमण करते हैं।

Update: 2021-09-22 03:17 GMT

जैन परंपरा में पर्युषण (दशलक्षण) महापर्व के ठीक एक दिन बाद जो महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता है, वह है - क्षमा पर्व। इस दिन श्रावक (गृहस्थ) और साधु दोनों ही वार्षिक प्रतिक्रमण करते हैं। पूरे वर्ष में उन्होंने जाने या अनजाने यदि संपूर्ण ब्रह्मांड के किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव के प्रति यदि कोई भी अपराध किया हो, तो उसके लिए वह उनसे क्षमा याचना करता है। अपने दोषों की निंदा करता है और कहता है- 'मिच्छा मे दुक्कडं' अर्थात् मेरे सभी दुष्कृत्य मिथ्या हो जाएं।

जीवखमयंति सव्वे खमादियसे च याचइ सव्वेहिं।
'मिच्छा मे दुक्कडं' च बोल्लइ वेरं मच्झं ण केण वि।।
क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं, सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है। वे प्रायश्चित भी करते हैं। इस प्रकार वह क्षमा के माध्यम से अपनी आत्मा से सभी पापों को दूर करके, उनका प्रक्षालन करके सुख और शांति का अनुभव करते हैं।
श्रावक प्रतिक्रमण में प्राकृत भाषा में एक गाथा है- 'खम्मामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झं ण केण वि।।' अर्थात मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूं, सभी जीव मुझे क्षमा करें। मेरा प्रत्येक प्राणी के प्रति मैत्री भाव है, किसी के प्रति वैर भाव नहीं है।
'क्षमावीरस्य भूषणं'
क्षमा आत्मा का स्वभाव है, किंतु हम हमेशा क्रोध को स्वभाव मान कर उसकी अनिवार्यता पर बल देते आए हैं। क्रोध को यदि स्वभाव कहेंगे तो वह आवश्यक हो जाएगा, इसीलिए जैन आगमों में क्रोध को विभाव कहा गया है, स्वभाव नहीं। 'क्षमा' शब्द 'क्षम' से बना है, जिससे 'क्षमता' भी बनता है। क्षमता का मतलब होता है सामथ्र्य और क्षमा का मतलब है किसी की गलती या अपराध का प्रतिकार नहीं करना। क्योंकि क्षमा का अर्थ सहनशीलता भी है। क्षमा कर देना बहुत बड़ी क्षमता का परिचायक है। इसीलिए नीति में कहा गया है -'क्षमावीरस्य भूषणं' अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है।
'क्षमा वाणी' उत्तम क्षमा का व्यावहारिक रूप है। वचनों से अपने मन की बात को कहकर जिनसे बोलचाल बंद है, उनसे भी क्षमा याचना करके बोलचाल प्रारंभ करना अनंत कषाय को मिटाने का सर्वोत्तम साधन है। संवादहीनता जितना वैर को बढ़ाती है उतना कोई और नहीं। अत: चाहे कुछ भी हो जाए, संवाद का मार्ग कभी भी बंद न होने दें। संवाद बचा रहेगा तो क्षमा की सभी संभावनाएं जीवित रहेंगी।


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