अंतिम प्रदोष व्रत पर करें इन नियमों का पालन, जानिए मंत्र और पूजा विधि
सनातन धर्म में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखा जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सनातन धर्म में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखा जाता है। पौष मास में इस वर्ष का अंतिम प्रदोष व्रत 21 दिसंबर 2022 के दिन रखा जाएगा। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन नियम और पूजा विधि को ध्यान में रखते हुए महादेव की आराधना करता है, उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि प्रदोष व्रत से जुड़े नियमों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। साथ ही इस व्रत से जुड़े नियमों का उल्लेख स्कंद पुराण में विस्तार से किया गया है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत से जुड़े नियम, पूजा विधि और मंत्र।
प्रदोष व्रत के नियम (Pradosh Vrat 2022 Niyam)
शास्त्रों में बताया गया है कि प्रदोष व्रत के दिन व्यक्ति को सुबह के समय स्नान-ध्यान कर के भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए।
व्रत की अवधि में नमक का सेवन बिलकुल ना करें और इस दिन किसी से भी विवाद मोल लेने से बचें। साथ ही इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन निश्चित रूप से किया जाना चाहिए।
प्रदोष व्रत के दिन तामसिक भोजन का सेवन बिलकुल न करें। साथ ही प्याज, लहसुन, मांस इत्यादि से भी दूर रहें। इसके साथ इस दिन तंबाकू और मदिरा का सेवन ना करें।
इस दिन निरंतर ॐ नमः शिवाय का जाप करें और प्रदोष काल में पूजा से पहले स्नान अवश्य कर लें।
भगवान शिव के मंत्र (Lord Shiva Mantra)
* नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ।।
* ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
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उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
* वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम: शिवायः ।।
* शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः ।
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने ।।
प्रदोष व्रत के दिन इस तरह करें पूजा (Pradosh Vrat Puja Vidhi)
शास्त्रों में बताया गया है कि बुध प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त के बाद की जाती है। इसलिए सुबह स्नान-ध्यान के बाद संध्या काल में भी एक बार फिर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान शिव की षोडशोपचार पूजन करें और प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करें। पूजा के बाद भगवान शिव की आरती अवश्य करें और प्रसाद ग्रहण करें।