हर साल मुहर्रम के महीने के 10वें दिन होता है रोज-ए-आशूरा, जानिए इसका महत्व
मुहर्रम के महीने से इस्लामिक साल की शुरुआत होती है
मुहर्रम के महीने से इस्लामिक साल की शुरुआत होती है. 9 अगस्त की शाम चांद के बाद मुहर्रम माह की शुरूआत हो चुकी है और ये महीना 7 सितंबर तक चलेगा. इस महीने को शोक का महीना माना जाता है. इस महीने में ही इराक के कर्बला मैदान में यजीद के सैनिक और पैंगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन के बीच लड़ाई हुई थी. महीने के दसवें दिन इमाम हुसैन समेत उनके 72 साथी शहीद हो गए थे. हर साल मुहर्रम के महीने के 10वें दिन रोज-ए-आशूरा होता है.
इस दिन हजरत इमाम हुसैन सहित कर्बला के 72 शहीदों की शहादत को याद करते हुए मातम मनाया जाता है. इस बार मुहर्रम आशूरा 19 अगस्त गुरुवार को है. इस दिन शिया मुसलमान हुसैन की याद में मातम करते हैं और काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं. इसके साथ ही इमाम हुसैन के इंसानियत के पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं. हालांकि इस बार कोरोना के खतरे को देखते हुए यूपी, बिहार और झारखंड समेत तमाम राज्यों ने मुहर्रम को लेकर गाइडलाइन जारी कर दी हैं और ताजिया व अलम सार्वजनिक रूप से स्थापित करने की बजाय घरों में स्थापित करने के निर्देश दिए हैं. यहां जानिए मातम के इस पर्व से जुड़ी खास बातें.
1. मुहर्रम माह के दसवें दिन पैगंबर हज़रत मोहम्मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों समेत एक धर्मयुद्ध में शहीद हुए थे और इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था.
2. कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं. जो लोग पूरे 10 दिनों को रोजे नहीं रख पाते, वो 9वें और 10वें दिन रोजे रखते हैं.
3. इस दिन पूरे देश में शिया मुसलमानों की अटूट आस्था का समागम देखने को मिलता है. जगह-जगह पानी के प्याऊ और शरबत की शबील लगाई जाती है. लोगों को इंसानियत का पैगाम दिया जाता है.
4. मुहर्रम का महीना शुरू होने से लेकर आशूरा के दिन तक दस दिन इमाम हुसैन के शोक में मनाए जाते हैं. इसलिए इसे मातम का पर्व माना जाता है.
5. इसी महीने में पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब, मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था.